कि परमेश्वर के भक्त एलीशा का सेवक गेहजी सोचने लगा, “मेरे स्वामी ने तो उस अरामी नामान को ऐसे ही छोड़ दिया है कि जो वह ले आया था उसको उसने न लिया, परन्तु यहोवा के जीवन की शपथ मैं उसके पीछे दौड़कर उससे कुछ न कुछ ले लूँगा।” तब गेहजी नामान के पीछे दौड़ा। नामान किसी को अपने पीछे दौड़ता हुआ देखकर, उससे मिलने को रथ से उतर पड़ा और पूछा, “सब कुशल क्षेम तो है?” उसने कहा, “हाँ, सब कुशल है; परन्तु मेरे स्वामी ने मुझे यह कहने को भेजा है, कि ‘एप्रैम के पहाड़ी देश से भविष्यद्वक्ताओं के चेलों में से दो जवान मेरे यहाँ अभी आए हैं, इसलिये उनके लिये एक किक्कार चाँदी और दो जोड़े वस्त्र दे।” नामान ने कहा, “खुशी से दो किक्कार ले ले।” तब उसने उससे बहुत विनती करके दो किक्कार चाँदी अलग थैलियों में बाँधकर, दो जोड़े वस्त्र समेत अपने दो सेवकों पर लाद दिया, और वे उन्हें उसके आगे आगे ले चले। जब वह टीले के पास पहुँचा, तब उसने उन वस्तुओं को उनसे लेकर घर में रख दिया, और उन मनुष्यों को विदा किया, और वे चले गए। तब वह भीतर जाकर, अपने स्वामी के सामने खड़ा हुआ। एलीशा ने उससे पूछा, “हे गेहजी, तू कहाँ से आता है?” उसने कहा, “तेरा दास तो कहीं नहीं गया।” उसने उससे कहा, “जब वह पुरुष इधर मुँह फेरकर तुझ से मिलने को अपने रथ पर से उतरा, तब से वह पूरा हाल मुझे मालूम था; क्या यह समय चाँदी या वस्त्र या जैतून या दाख की बारियाँ, भेड़–बकरियाँ, गाय–बैल और दास–दासी लेने का है? इस कारण से नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा।” तब वह हिम–सा श्वेत कोढ़ी होकर उसके सामने से चला गया।
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