किसी बूढ़े को न डाँट, पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानों को भाई जानकर; बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर; और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जानकर समझा दे। उन विधवाओं का, जो सचमुच विधवा हैं, आदर कर। यदि किसी विधवा के बच्चे या नाती–पोते हों, तो वे पहले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव करना, और अपने माता–पिता आदि को उनका हक्क देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्वर को भाता है। जो सचमुच विधवा है, और उसका कोई नहीं, वह परमेश्वर पर आशा रखती है, और रात दिन विनती और प्रार्थना में लौलीन रहती है; पर जो भोगविलास में पड़ गई, वह जीते जी मर गई है। इन बातों की भी आज्ञा दिया कर ताकि वे निर्दोष रहें। पर यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है। उसी विधवा का नाम लिखा जाए जो साठ वर्ष से कम की न हो, और एक ही पति की पत्नी रही हो, और भले काम में सुनाम रही हो, जिस ने बच्चों का पालन–पोषण किया हो; अतिथियों की सेवा की हो, पवित्र लोगों के पाँव धोए हों, दुखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो। पर जवान विधवाओं के नाम न लिखना, क्योंकि जब वे मसीह का विरोध करके सुख–विलास में पड़ जाती हैं तो विवाह करना चाहती हैं, और दोषी ठहरती हैं, क्योंकि उन्होंने अपने पहले विश्वास को छोड़ दिया है।
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