1 कुरिन्थियों 14:21-40

1 कुरिन्थियों 14:21-40 HINOVBSI

व्यवस्था में लिखा है कि प्रभु कहता है, “मैं अपरिचित भाषा बोलनेवालों के द्वारा, और पराए मुख के द्वारा इन लोगों से बातें करूँगा तौभी वे मेरी न सुनेंगे।” इसलिये अन्य भाषाएँ विश्‍वासियों के लिये नहीं, परन्तु अविश्‍वासियों के लिये चिह्न हैं; और भविष्यद्वाणी अविश्‍वासियों के लिये नहीं, परन्तु विश्‍वासियों के लिये चिह्न हैं। अत: यदि कलीसिया एक जगह इकट्ठी हो, और सब के सब अन्य भाषाएँ बोलें, और बाहरवाले या अविश्‍वासी लोग भीतर आ जाएँ तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे? परन्तु यदि सब भविष्यद्वाणी करने लगें, और कोई अविश्‍वासी या बाहरवाला मनुष्य भीतर आ जाए, तो सब उसे दोषी ठहरा देंगे और परख लेंगे; और उसके मन के भेद प्रगट हो जाएँगे, और तब वह मुँह के बल गिरकर परमेश्‍वर को दण्डवत् करेगा, और मान लेगा कि सचमुच परमेश्‍वर तुम्हारे बीच में है। इसलिये हे भाइयो, क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन या उपदेश या अन्य भाषा या प्रकाश या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता है। सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए। यदि अन्य भाषा में बातें करनी हों तो दो या बहुत हो तो तीन जन बारी–बारी से बोलें, और एक व्यक्‍ति अनुवाद करे। परन्तु यदि अनुवाद करनेवाला न हो, तो अन्य भाषा बोलनेवाला कलीसिया में शान्त रहे, और अपने मन से और परमेश्‍वर से बातें करे। भविष्यद्वक्‍ताओं में से दो या तीन बोलें, और शेष लोग उनके वचन को परखें। परन्तु यदि दूसरे पर जो बैठा है, कुछ ईश्‍वरीय प्रकाश हो तो पहला चुप हो जाए। क्योंकि तुम सब एक एक कर के भविष्यद्वाणी कर सकते हो, ताकि सब सीखें और सब शान्ति पाएँ। और भविष्यद्वक्‍ताओं की आत्मा भविष्यद्वक्‍ताओं के वश में है। क्योंकि परमेश्‍वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का परमेश्‍वर है। जैसा पवित्र लोगों की सब कलीसियाओं में है। स्त्रियाँ कलीसिया की सभा में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की आज्ञा नहीं, परन्तु अधीन रहने की आज्ञा है, जैसा व्यवस्था में लिखा भी है। यदि वे कुछ सीखना चाहें, तो घर में अपने अपने पति से पूछें, क्योंकि स्त्री का कलीसिया में बातें करना लज्जा की बात है। क्या परमेश्‍वर का वचन तुम में से निकला है? या केवल तुम ही तक पहुँचा है? यदि कोई मनुष्य अपने आप को भविष्यद्वक्‍ता या आत्मिक जन समझे, तो यह जान ले कि जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ, वे प्रभु की आज्ञाएँ हैं। परन्तु यदि कोई यह न माने, तो उसको भी न मानो। अत: हे भाइयो, भविष्यद्वाणी करने की धुन में रहो और अन्य भाषा बोलने से मना न करो; पर सारी बातें शालीनता और व्यवस्थित रूप से की जाएँ।