‘सुनो! मेरे प्रियतम की आवाज। देखो, वह पहाड़ों पर कूदता, पहाड़ियों को फांदता आ रहा है! मेरा प्रियतम मृग की तरह है, वह तरुण हरिण है। देखो, वह हमारी दीवार के पीछे खड़ा है, वह खिड़कियों की ओर ताक रहा है, वह झंझरी से झांक रहा है। मेरा प्रियतम मुझसे कह रहा है : “ओ मेरी प्रियतमा, मेरी प्रियदर्शिनी, उठकर चली आ। देख, शरद ऋतु बीत गई, वर्षा भी बरस कर जा चुकी, धरती पर फूल खिलने लगे। गीत गाने का समय आ गया। हमारे देश में पण्डुक का स्वर सुनाई देने लगा। अंजीर फल पकने लगे हैं, अंगूर लताएँ फूल रही हैं, वे सुगन्ध बिखेर रही हैं। ओ मेरी प्रियतमा, मेरी प्रियदर्शिनी, उठकर चली आ। ओ मेरी कपोती। चट्टानों की खोहों में पहाड़ों की गुप्त दरारों में मुझे तेरे रूप के दर्शन करने दे, मुझे तेरी आवाज सुनने दे। क्योंकि तेरा मुख सुन्दर है, तेरी आवाज मधुर है।”
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