रोमियों 15:21-33

रोमियों 15:21-33 HINCLBSI

बल्‍कि धर्मग्रन्‍थ का यह कथन पूरा करना चाहता था, “जिन्‍हें कभी उसका सन्‍देश नहीं मिला था, वे उसके दर्शन करेंगे और जिन्‍होंने कभी उसके विषय में नहीं सुना, वे समझेंगे।” यही कारण है कि अब तक आप लोगों के यहाँ मेरे आगमन में बराबर बाधा पड़ी है। अब तो इधर के प्रदेशों में मेरा कोई कार्यक्षेत्र नहीं रहा और मैं कई वर्षों से चाह रहा हूँ कि स्‍पेन देश जाते समय आप लोगों के यहाँ आऊं। मुझे आशा है कि मैं उस यात्रा में आप लोगों के दर्शन करूँगा और कुछ समय तक आपकी संगति का लाभ उठाने के बाद आप लोगों की सहायता से स्‍पेन की यात्रा कर सकूँगा। मैं अब सन्‍तों की सेवा में यरूशलेम जा रहा हूँ। क्‍योंकि मकिदुनिया तथा यूनान की कलीसियाओं ने यह शुभ संकल्‍प किया है कि वे सहभागिता के रूप में यरूशलेम के गरीब संतों के लिए कुछ सहायता भेजें। उनका यह संकल्‍प उचित ही है—वास्‍तव में वे यरूशलेम के सन्‍तों के ऋणी भी हैं, क्‍योंकि यदि गैर-यहूदी लोग यहूदियों की आध्‍यात्‍मिक सम्‍पत्ति के भागी बने, तो गैर-यहूदियों को अपनी लौकिक सम्‍पत्ति से उनकी सार्वजनिक सेवा करना चाहिए। यह कार्य समाप्‍त कर, अर्थात् यह दान विधिवत् उनके हाथों मैं सौंपने के बाद, मैं आप लोगों के यहाँ हो कर स्‍पेन जाऊंगा। मुझे विश्‍वास है कि जब मैं आपके यहाँ आऊंगा, तो मसीह का परिपूर्ण आशीर्वाद लिये आऊंगा। भाइयो और बहिनो! हमारे प्रभु येशु मसीह और पवित्र आत्‍मा के प्रेम के नाम पर मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आप मेरे लिए परमेश्‍वर से संघर्षमय प्रार्थना करने में मेरा साथ देते रहें, जिससे मैं यहूदा प्रदेश के अविश्‍वासियों से बचा रहूँ और जिस सेवा-कार्य के लिए मैं यरूशलेम जा रहा हूँ, वह वहाँ के संतों को सुग्राह्य हो और मैं आनन्‍द के साथ आप लोगों के यहाँ पहुँच कर परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार आप लोगों की संगति में विश्राम कर सकूँ। शान्‍ति का परमेश्‍वर आप सब के साथ रहे। आमेन!

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