सन्तों की आवश्यकताओं के लिए दान दिया करें और अतिथियों की सेवा करें। अपने अत्याचारियों के लिए आशीर्वाद माँगें—हाँ, आशीर्वाद, न कि अभिशाप! आनन्द मनाने वालों के साथ आनन्द मनायें, रोने वालों के साथ रोयें। आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाये रखें। घमण्डी न बनें, बल्कि दीन-दु:खियों से मिलते-जुलते रहें। अपने आप को बुद्धिमान् न समझें। बुराई के बदले बुराई नहीं करें। जो बातें सब मनुष्यों की दृष्टि में सात्विक हैं, उन्हें अपना लक्ष्य बनाएँ।
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