मूसा व्यवस्था पर आधारित धार्मिकता के विषय में लिखते हैं, “जो मनुष्य इन बातों का पालन करेगा, उसे इनके द्वारा जीवन प्राप्त होगा।” किन्तु विश्वास पर आधारित धार्मिकता का वक्तव्य यह है, “तुम अपने मन में यह मत कहो कि कौन स्वर्ग जायेगा?” अर्थात् मसीह को नीचे ले आने के लिए, अथवा “कौन अधोलोक में उतरेगा?”, अर्थात् मसीह को मृतकों में से ऊपर ले आने के लिए। किन्तु उस धार्मिकता का कथन क्या है?, “वचन तुम्हारे पास है, वह तुम्हारे मुख में और तुम्हारे हृदय में है।” यह विश्वास का वह वचन है, जिसका हम प्रचार करते हैं। क्योंकि यदि तुम मुख से स्वीकार करते हो कि येशु प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हो कि परमेश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो तुम्हें मुक्ति प्राप्त होगी। हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धार्मिक ठहरता है और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है। धर्मग्रन्थ कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा।” इसलिए यहूदी और यूनानी में कोई भेद नहीं है—सब का प्रभु एक ही है। वह उन सब के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते हैं; क्योंकि “जो कोई प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।”
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