शहरपनाह सूर्यकान्त की बनी थी, लेकिन नगर विशुद्ध स्वर्ण का बना था, जो स्फटिक-जैसा चमकता था। शहरपनाह की नींव नाना प्रकार के रत्नों की बनी थी। पहली परत सूर्यकान्त की थी, दूसरी नीलम की, तीसरी गोदन्ती की, चौथी मरकत की, पाँचवीं गोमेदक की, छठी रुधिराख्य की, सातवीं स्वर्णमणि की, आठवीं फीरोजे की, नवीं पुखराज की, दसवीं रुद्राक्षक की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की और बारहवीं चन्द्रकान्त की। बारह फाटक बारह मोतियों के बने थे, प्रत्येक फाटक एक-एक मोती का बना था। नगर का चौक पारदर्शी स्फटिक-जैसे विशुद्ध सोने का बना था। मैंने उस में कोई मन्दिर नहीं देखा, क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर उसका मन्दिर है, और मेमना भी। नगर को सूर्य अथवा चन्द्रमा के प्रकाश की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमेश्वर की महिमा उसकी ज्योति और मेमना उसका प्रदीप है। राष्ट्र उसकी ज्योति में चलेंगे और पृथ्वी के राजा उस में अपना वैभव ले आयेंगे। उसके फाटक दिन में कभी बन्द नहीं होंगे और वहाँ कभी रात नहीं होगी। राष्ट्रों का वैभव और सम्पत्ति उस में लायी जायेगी, लेकिन उस में न तो कोई अपवित्र वस्तु प्रवेश कर पायेगी और न कोई ऐसा व्यक्ति, जो घृणित काम करता या झूठ बोलता है। वे ही प्रवेश कर पायेंगे, जिनके नाम मेमने के जीवन-ग्रन्थ में अंकित हैं।
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