भजन संहिता 45:1-11

भजन संहिता 45:1-11 HINCLBSI

मेरे हृदय में सुन्‍दर भाव उमड़ रहे हैं − मैं राजा के लिए गीत गाऊंगा; मेरी जीभ निपुण लेखक की लेखनी है। आप पुरुषों में सर्वसुन्‍दर हैं। आपके ओंठों से माधुर्य टपकता है। अत: परमेश्‍वर ने युग-युगांत आपको आशिष दी है। ओ परम वीर! यश और प्रताप से अपनी तलवार कमर पर धारण कीजिए। आपके यश की समृद्धि हो। सत्‍य और न्‍याय की रक्षा के लिए आप सवार होइए। आपका दाहिना हाथ आपको आतंकपूर्ण कार्यों के लिए प्रेरित करे। आपके बाण तीक्ष्ण हैं, वे आपके शत्रुओं के हृदय को बेधते हैं, कौमें आपके चरणों पर गिर पड़ी हैं। आपका सिंहासन युग-युगांत स्‍थिर है, जो परमेश्‍वर ने आप को दिया है। आपका राजदण्‍ड न्‍याय का राजदण्‍ड है। आप धार्मिकता से प्रेम करते हैं और दुराचार से घृणा। इसलिए परमेश्‍वर ने, आपके परमेश्‍वर ने, आपके साथियों से आपको पृथक कर, हर्ष के तेल से आपका अभिषेक किया है। आपके वस्‍त्र गंधरस, अगर और तेजपात से सुगंधित हैं। हाथी-दांत के महलों में संगीत आपको आनन्‍दित करता है। राजकन्‍याएं आपकी सम्‍मानित महिलाओं में हैं; आपकी दाहिनी ओर रानी, ओपीर के कुन्‍दन से सजी हुई बैठी है। ओ राजकन्‍या! सुन, विचार कर और ध्‍यान दे; अपनी जाति और मायके को भूल जा। तब राजा तेरे रूप की कामना करेंगे। वह तेरे स्‍वामी हैं−तू उनके सामने सिर झुका।