मैंने कहा, “मैं अपने मार्ग की चौकसी करूंगा, जिससे मैं अपनी जीभ के कारण पाप न करूँ। जब तक दुर्जन मेरे सामने हैं, मैं अपने मुंह में लगाम दूंगा।” मैं मूक और शान्त था। मैं भलाई के प्रति भी चुप रहा; किन्तु मेरी पीड़ा बढ़ती गई। मेरे भीतर ही भीतर मेरा हृदय उबल उठा; मेरे सोचते-सोचते अग्नि धधकने लगी, तब मैं पुकार उठा; “हे प्रभु, मेरा अन्त मुझे बता दे। मेरे जीवन-काल की सीमा क्या है? मुझे बता दे कि मेरा जीवन कितना क्षणभंगुर है। तूने मेरे जीवन-काल को बित्ता भर बनाया है। मेरी आयु तेरे सम्मुख कुछ भी नहीं है। वस्तुत: प्रत्येक मनुष्य की स्थिति श्वास मात्र है। सेलाह निस्सन्देह मनुष्य छाया जैसा चलता-फिरता प्राणी है। निस्सन्देह वह व्यर्थ ही उत्तोजित है; मनुष्य धन का ढेर तो लगाता है, पर नहीं जानता कि कौन उसे भोगेगा। “अब स्वामी, मैं किस की प्रतीक्षा करूँ? मेरी आशा तो तुझ पर लगी है।
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