भजन संहिता 146:1-10

भजन संहिता 146:1-10 HINCLBSI

प्रभु की स्‍तुति करो! ओ मेरे प्राण, प्रभु की स्‍तुति कर। जब तक मैं जीवित हूं, प्रभु की स्‍तुति करूँगा, मैं अपने जीवन-भर अपने परमेश्‍वर का स्‍तुतिगान करूंगा। शासकों पर भरोसा मत करो, और न मनुष्‍यों पर, जिनमें सहायता करने का सामर्थ्य नहीं है। प्राण के निकलते ही वे मिट्टी में मिल जाते हैं; उसी दिन उनकी योजनाएँ भी नष्‍ट हो जाती हैं। धन्‍य है वह मनुष्‍य, जिसका सहायक इस्राएल का परमेश्‍वर है, जो अपने प्रभु परमेश्‍वर पर आशा करता है। वही प्रभु आकाश, पृथ्‍वी और सागर का एवं सबका सृजक है, जो उनमें हैं। प्रभु सदा के लिए सत्‍य का रक्षक है; वह दलितों को न्‍याय दिलाता है; और भूखों को रोटी देता है। निस्‍सन्‍देह, प्रभु बन्‍दियों को छुड़ाता है। वह अन्‍धों को दृष्‍टि देता है। प्रभु झुके हुओं को उठाता है; प्रभु अपने भक्‍तों से प्रेम करता है। प्रभु परदेशी का रक्षक है, वह अनाथ एवं विधवा का सहारा है; पर वह दुर्जनों के मार्ग को कुटिल बनाता है। ओ सियोन, तेरा प्रभु परमेश्‍वर पीढ़ी से पीढ़ी तक सदा राज्‍य करता है। प्रभु की स्‍तुति करो!

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