भजन संहिता 112:1-10

भजन संहिता 112:1-10 HINCLBSI

प्रभु की स्‍तुति करो! धन्‍य है, वह मनुष्‍य जो प्रभु का भय मानता है, जो उसकी आज्ञाओं से बहुत प्रसन्न होता है। उसके वंशज पृथ्‍वी पर महान होंगे; सत्‍यनिष्‍ठ व्यक्‍ति की पीढ़ी आशिष पाएगी। उसके घर में धन-सम्‍पत्ति रहती है; उसकी धार्मिकता सदा बनी रहती है। सत्‍यनिष्‍ठ व्यक्‍ति के हेतु अन्‍धकार में प्रकाश उदय होता है; प्रभु कृपालु, दयालु और धार्मिक है। जो मनुष्‍य दूसरों पर कृपा करता, और उधार देता है, जो न्‍यायपूर्वक प्रत्‍येक कार्य करता है, उसका कल्‍याण होता है। वह कभी विचलित न होगा, भक्‍त की स्‍मृति सदा बनी रहेगी। वह अशुभ समाचार से नहीं डरता; वह प्रभु पर भरोसा रखता है, उसका हृदय अडिग रहता है। उसका हृदय दृढ़ है, जब तक वह अपने बैरियों पर विजयपूर्ण दृष्‍टि न करे, वह नहीं डरेगा। उसने उदारता से दरिद्रों को दान दिया है, उसकी धार्मिकता सदा बनी रहेगी; सम्‍मान से उसका सिर ऊंचा रहता है। दुर्जन यह देखकर क्रोधित होता है; वह दांत पीसता और गल-गलकर मर जाता है। अत: दुर्जन की इच्‍छा का विनाश होता है।