भजन संहिता 109:1-20

भजन संहिता 109:1-20 HINCLBSI

मेरी स्‍तुति के परमेश्‍वर, तू चुप न रह! दुर्जन और कुटिल व्यक्‍ति के मुंह मेरे विरुद्ध खुले हैं, वे मुझ से झूठी जिह्‍वा से बात करते हैं। घृणास्‍पद शब्‍दों से मुझे घेरते, और अकारण मुझ पर आक्रमण करते हैं। वे मेरे प्रेम के बदले मुझ पर दोषारोपण करते हैं, फिर भी मैं निरन्‍तर प्रार्थना करता हूं। वे भलाई के निमित्त बुराई, मेरे प्रेम के बदले मुझे घृणा लौटाते हैं। वे यह कहते हैं, ‘इसके विरुद्ध किसी दुर्जन को न्‍यायाधीश नियुक्‍त करो; दोषारोपण करनेवाला इसके दाहिने हाथ पर खड़ा हो। जब इसका न्‍याय हो, तब यह दोषी ठहरे; इसकी क्षमा-याचना पाप गिनी जाए। इसके जीवन के दिन नगण्‍य हों; इसका पद कोई दूसरा छीन ले! इसके बच्‍चे पितृहीन और पत्‍नी विधवा हो जाए! इसके बच्‍चे मारे-मारे फिरें, वे भीख मांगें; वे अपने उजाड़ घरों से भी निकाल दिए जाएं। महाजन इसका सर्वस्‍व छीन ले, विदेशी इसके परिश्रम के फल को लूट लें। इस पर कोई करुणा न करे, इसके पितृहीन बच्‍चों पर कोई दया न करे। इसका वंश नष्‍ट हो जाए, दूसरी पीढ़ी में इसका नाम मिट जाए। इसके पूर्वजों के कुकर्म प्रभु के समक्ष स्‍मरण किए जाएं; इसकी माता का पाप न मिटाया जाए। इसके पाप प्रभु के समक्ष निरन्‍तर रहें, प्रभु धरती से इसकी स्‍मृति मिटा डाले। क्‍योंकि इसने दया का व्‍यवहार करना स्‍मरण न रखा, बल्‍कि यह पीड़ित और दरिद्र का, हताश व्यक्‍ति का पीछा करता रहा कि उसे मार डाले। इसे शाप देना प्रिय था, अभिशाप इस पर आ पड़े! आशिष इसे पसन्‍द न थी; वह इससे दूर रहे! यह वस्‍त्र की भांति अभिशाप धारण करता था! जल के सदृश अभिशाप इसके पेट में, तेल के समान इसकी हड्डियों में समा जाए। अभिशाप इसकी चादर बन जाए, जिसको यह ओढ़ता है; अभिशाप इसका कटिबन्‍ध हो जाए, जिसको वह नित्‍य लपेटता है।’ मुझ पर दोषरोपण करने वालों को, मेरे विरुद्ध बुरी-बुरी बातें कहने वालों को प्रभु की ओर से यही प्रतिफल मिले।

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