प्रभु नदियों को मरुभूमि में, झरनों को शुष्क भूमि में, वहां के निवासियों की दुष्टता के कारण फलवन्त भूमि को लोनी मिट्टी में बदल डालता है। वह मरुभूमि को जलाशय में, निर्जल भूमि को जल के झरनों में बदल देता है। तब वह वहां भूखों को बसाता है, और वे बसने के लिए नगर का निर्माण करते हैं। वे भूमि में बीज बोते, अंगूर के बाग लगाते, और अधिकाधिक फल प्राप्त करते हैं। प्रभु उनको आशिष देता है कि वे बढ़ते जाएं; वह उनके पशुओं को भी घटने नहीं देता है। जब वे दमन, संकट और दु:ख के कारण घटते और दब जाते हैं तब प्रभु शासकों पर पराजय के अपमान की वर्षा करता है, और उन्हें मार्गहीन उजाड़ खण्ड में भटकाता है। किन्तु वह दरिद्र को पीड़ा से निकाल कर उन्नत करता है, वह उनके परिवारों को रेवड़ के सदृश विशाल बनाता है। निष्कपट व्यक्ति यह देखकर आनन्दित होते हैं; दुष्टता अपना मुंह बन्द रखती है। जो बुद्धिमान है, वह इन बातों पर ध्यान दे; लोग प्रभु की करुणा पर विचार करें।
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