भजन संहिता 10:1-18

भजन संहिता 10:1-18 HINCLBSI

प्रभु, क्‍यों तू दूर खड़ा रहता है? क्‍यों मेरे संकट के समय तू स्‍वयं को छिपाता है? अहंकारवश दुर्जन पीड़ित मनुष्‍य का शिकार करते हैं; वे स्‍वयं उस षड्‍यन्‍त्र में फंस जाएं, जिसे उन्‍होंने रचा है। दुर्जन अपनी अभिलाषा की डींग मारता है; वह स्‍वयं की प्रशंसा करता, पर प्रभु की निन्‍दा करता है। अहंकारवश दुर्जन प्रभु को खोजता नहीं, उसका यह विचार है, “परमेश्‍वर है ही नहीं।” वह सदा अपने मार्ग पर फलता-फूलता है; तेरे न्‍याय-सिद्धान्‍त उसकी दृष्‍टि से दूर, शिखर पर हैं, वह अपने सब शत्रुओं पर फूत्‍कारता है। वह अपने हृदय में यह सोचता है, “मैं अटल हूँ। मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक संकट में नहीं पड़ूंगा।” उसका मुंह कपट, शाप और अत्‍याचार से भरा है; उसकी जीभ पर अनिष्‍ट और अपकार हैं। वह गाँवों में घात लगाकर बैठा रहता है, वह गुप्‍त स्‍थानों में निर्दोष की हत्‍या करता है। उसकी आंखें छिपे-छिपे शिकार को ताकती हैं। वह एकांत में घात लगाकर बैठता है, जैसे सिंह झाड़ी में। वह घात में बैठता है कि पीड़ित को दबोचे। जब वह पीड़ित को जाल में फंसा लेता है, तब उसे दबोचता है। अभागा मनुष्‍य दब जाता है और झुक जाता है, और उसके प्रबल दबाव से गिर पड़ता है। अभागा अपने हृदय में यह सोचता है, “परमेश्‍वर मुझे भूल गया। उसने अपना मुख छिपा लिया। वह फिर कभी इधर नहीं देखेगा।” हे प्रभु परमेश्‍वर! उठ, अपना हाथ उठा। तू पीड़ित मनुष्‍य को मत भूल! दुर्जन तुझ परमेश्‍वर का क्‍यों तिरस्‍कार करता है? क्‍यों वह अपने हृदय में सोचता है कि तू लेखा न लेगा? पर तू देखता है, निश्‍चय ही तूने दु:खों और कष्‍टों पर ध्‍यान दिया है; तू उन्‍हें अपने हाथ में लेगा। अभागा मनुष्‍य स्‍वयं को तुझपर छोड़ देता है, क्‍योंकि तू अनाथों का नाथ है। दुर्जन और अधर्मी का बाहुबल तोड़ दे; उनकी दुष्‍टता का लेखा ले, जब तक वह लेश मात्र शेष न रहे। प्रभु युग-युगांत राजा है, उसकी धरती से राष्‍ट्र मिट जाएंगे। अनाथ और दलित के न्‍याय के लिए, प्रभु तू पीड़ित मनुष्‍य की पुकार सुनता है; तू उनके हृदय को आश्‍वस्‍त करेगा, तू उनकी पुकार ध्‍यान से सुनेगा, जिससे मनुष्‍य, जो मिट्टी से रचा गया है, फिर कभी दूसरों को भयभीत न करे।