नीतिवचन 6:23-35

नीतिवचन 6:23-35 HINCLBSI

क्‍योंकि पिता की आज्ञा मार्ग का दीपक है, और मां की शिक्षा जीवन की ज्‍योति है! अनुशासन के लिए दी जानेवाली चेतावनियां जीवन का मार्ग हैं। ये तुम्‍हें बुरी स्‍त्री से, व्‍यभिचारिणी स्‍त्री के मीठे बोल से बचाएंगी। मेरे पुत्र, बुरी स्‍त्री के सौन्‍दर्य की कामना अपने हृदय में मत करना, उसके कटाक्ष के जाल में मत फंसना। वेश्‍या रोटी के एक टुकड़े में खरीदी जा सकती है, किन्‍तु व्‍यभिचारिणी स्‍त्री पुरुष का जीवन ही नष्‍ट कर देती है। क्‍या यह सम्‍भव है कि मनुष्‍य छाती पर आग रखे, और उसके वस्‍त्र न जलें; वह अंगारे पर चले पर उसके पैर न झुलसें? अत: जो पुरुष परायी स्‍त्री के पास जाता है, वह भी ऐसे ही जलेगा; जो पुरुष परायी स्‍त्री का स्‍पर्श करेगा, वह दण्‍ड से नहीं बचेगा। जब चोर भूख के कारण चोरी करता, और चोरी की रोटी से अपना पेट भरता है, तब लोग उसको तुच्‍छ नहीं समझते हैं। जब चोर पकड़ा जाता है तब उसको सात गुना भरना पड़ता है। उसे अपने घर का सारा माल देना पड़ता है। व्‍यभिचार करनेवाला व्यक्‍ति निरा मूर्ख होता है, जो पुरुष व्‍यभिचार करता है, वह स्‍वयं को नष्‍ट करता है। वह घायल और अपमानित होता है, उसका कलंक कभी धुल नहीं सकेगा। ईष्‍र्या पुरुष को क्रोध से अन्‍धा बना देती है; जब वह बदला लेगा तब वह तुझ पर दया नहीं करेगा। वह क्षतिपूर्ति के लिए कुछ नहीं लेगा; तू उसको कितने ही उपहार देगा, पर वह प्रसन्न नहीं होगा।