नीतिवचन 4:1-19

नीतिवचन 4:1-19 HINCLBSI

मेरे पुत्रो, अपने पिता की शिक्षा सुनो, और ज्ञान को प्राप्‍त करने में मन लगाओ। मैं तुम्‍हें अच्‍छी विद्या दे रहा हूं, मेरी सीख की उपेक्षा मत करना। देखो, मैं भी अपने पिता का पुत्र था, मैं भी अपनी मां का दुलारा इकलौता पुत्र था। मेरे पिता ने मुझे शिक्षा दी; उसने मुझसे यह कहा: ‘मेरे शब्‍दों पर तेरा हृदय लगा रहे; मेरी आज्ञाओं का पालन कर तो तू सदा जीवित रहेगा। मेरे मुंह के शब्‍दों को मत भूलना, उनसे विमुख मत होना। बुद्धि को प्राप्‍त कर; समझ को खरीद। उसको मत छोड़ना, वह तेरी निगरानी करेगी; बुद्धि से प्रेम करना, वह तेरी रक्षा करेगी। बुद्धि का आरम्‍भ इस प्रकार होता है: बुद्धि को प्राप्‍त कर; समझ को हर कीमत पर प्राप्‍त कर। बुद्धि की कीमत ऊंची लगा तो वह तेरी कीमत बढ़ाएगी; यदि तू उसको गले लगाएगा तो वह तेरा सम्‍मान करेगी। वह तेरे मस्‍तक को कीमती आभूषण पहनाएगी; वह तुझको भव्‍य मुकुट प्रदान करेगी।’ मेरे पुत्र, मेरी बात सुन; मेरे शब्‍दों को स्‍वीकार कर ताकि तेरी आयु लम्‍बी हो। मैंने तुझको बुद्धि का मार्ग बताया है; मैंने सीधे पथ पर तेरा मार्ग-दर्शन किया है। जब तू बुद्धि के मार्ग पर चलेगा, तब तेरे पैरों को बाधा न होगी; यदि तू दौड़ेगा तो तुझको ठोकर न लगेगी। मेरी शिक्षा को कस कर पकड़े रह, उसकी रक्षा कर, वह तेरा जीवन है। दुर्जन की गली में कदम मत रखना और न दुष्‍कर्मी के पथ पर चलना। उस पथ की ओर ध्‍यान भी न देना, उसके पास से गुजरना भी नहीं। उसकी ओर से मुंह मोड़ ले, और आगे बढ़ जा! जब तक दुर्जन दुष्‍कर्म न कर लें उनको नींद भी नहीं आती: जब तक वे निर्दोष व्यक्‍ति को सता नहीं लेते, नींद उनके पास फटकती भी नहीं। दुष्‍कर्म ही उनकी रोटी, और हिंसा ही उनका पानी है। धार्मिक व्यक्‍ति का पथ मानो ऊषाकाल का प्रकाश है, जो सबेरे से दोपहर तक अधिकाधिक बढ़ता जाता है। पर दुर्जनों का मार्ग घोर अन्‍धकारमय है, वे नहीं जानते कि किससे ठोकर खा रहे हैं।