नीतिवचन 3:19-35

नीतिवचन 3:19-35 HINCLBSI

प्रभु ने बुद्धि से पृथ्‍वी की नींव डाली है; उसने समझ से आकाश को स्‍थिर किया है। उसके ज्ञान से गहरे जल-स्रोत फूटते हैं और आकाश से ओस टपकती है। प्रिय शिष्‍य, खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर, ये तेरी आंखों से ओझल न हों। तब तू उनसे जीवन प्राप्‍त करेगा, ये तेरे गले का हार बनेंगे। तब तू अपने मार्ग पर निश्‍चिंत चलेगा, तेरे पैरों में ठोकर नहीं लगेगी। जब तू सोएगा तब तुझे डर न लगेगा, निस्‍सन्‍देह सोते समय तुझे सुख की नींद आएगी। प्रिय शिष्‍य, अचानक आने वाले आतंक से न डरना; जब दुर्जन तुझ पर तूफान की तरह टूट पड़ें, तब न घबराना; क्‍योंकि प्रभु तुझे सहारा देगा, वह तेरे पैर को फंदे में फंसने से बचाएगा। यदि तुझमें भला करने का सामर्थ्य है तो उनका भला अवश्‍य करना जो भलाई के योग्‍य हैं। यदि तेरे पास अपने पड़ोसी को देने के लिए कुछ है तो उससे यह मत कहना, ‘जाओ, कल फिर आना। मैं कल दूंगा।’ अपने पड़ोसी के विरुद्ध कुचक्र मत रचना, क्‍योंकि वह तुझ पर भरोसा करके तेरे पड़ोस में रहता है। जिस मनुष्‍य ने तेरा अनिष्‍ट न किया हो उससे अकारण मत लड़ना। हिंसा करनेवाले व्यक्‍ति से ईष्‍र्या मत करना, और न उसके आचरण का अनुसरण करना। प्रभु की दृष्‍टि में कुटिल व्यक्‍ति घृणित है, किन्‍तु निष्‍कपट व्यक्‍ति उसका विश्‍वासपात्र है। प्रभु का श्राप दुर्जन के घर पर पड़ता है; पर प्रभु धार्मिक व्यक्‍ति के निवास-स्‍थान पर आशिष की वर्षा करता है। दूसरे को तुच्‍छ समझनेवाले को, प्रभु तुच्‍छ समझता है। पर जो मनुष्‍य नम्र और दीन है, उस पर प्रभु कृपा करता है। बुद्धिमान को सम्‍मान मिलता है, पर मूर्ख का हर जगह अपमान होता है।