नीतिवचन 3:1-18

नीतिवचन 3:1-18 HINCLBSI

प्रिय शिष्‍य! मेरी शिक्षा को मत भूलना, अपने हृदय में मेरी आज्ञाओं को स्‍मरण रखना; क्‍योंकि ऐसा करने से तेरे जीवन के दिन और वर्ष और बढ़ेंगे, तेरा अधिकाधिक कल्‍याण होगा। प्रिय शिष्‍य, करुणा और सच्‍चाई तुझसे कभी अलग न हों; तू उनको अपने गले का हार बनाना; और उनको अपने हृदय-पटल पर लिख लेना। तब तू परमेश्‍वर और मनुष्‍य दोनों की दृष्‍टि में कृपा का पात्र होगा। तू अति बुद्धिमान बनेगा। तू अपनी समझ का सहारा न लेना वरन् सम्‍पूर्ण हृदय से प्रभु पर भरोसा करना। अपने सब कार्यों में तू प्रभु को स्‍मरण करना, वह तेरे कठिन मार्ग को सरल कर देगा। अपनी ही दृष्‍टि में स्‍वयं को बुद्धिमान मत मानना; प्रभु से डरना और बुराई से मुंह फेरना। इससे तेरा शरीर सदा स्‍वस्‍थ रहेगा और तेरी हड्डियों में ताजगी बनी रहेगी। अपनी धन-सम्‍पत्ति से प्रभु की महिमा करना, तू उसको अपनी फसल का प्रथम फल चढ़ाना। तब तेरे भण्‍डार-घर भरे-पूरे रहेंगे; तेरे कुण्‍डों में अंगूर-रस उमड़ता रहेगा। प्रिय शिष्‍य, प्रभु की ताड़ना की उपेक्षा मत करना, जब वह तुझे दण्‍ड दे तब तू उससे घृणा मत करना। जैसे पिता अपने प्रिय पुत्र को ताड़ना देता है वैसे ही प्रभु उस मनुष्‍य को ताड़ना देता है जिससे वह प्रेम करता है। धन्‍य है वह मनुष्‍य जिसको बुद्धि मिल गई है; जिसने समझ को पा लिया है। क्‍योंकि बुद्धि की प्राप्‍ति चांदी की प्राप्‍ति से श्रेष्‍ठ है; उसकी उपलब्‍धि सोने से बढ़कर है। बुद्धि मोतियों से अधिक मूल्‍यवान है। तेरी किसी भी इष्‍ट वस्‍तु से उसकी तुलना नहीं हो सकती। उसके दाहिने हाथ में दीर्घायु, और बाएँ हाथ में सम्‍पत्ति और सम्‍मान हैं। उसके मार्ग आनन्‍दमय हैं; उसके पथ सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हैं। जो मनुष्‍य उसको थामे रहते हैं, उनके लिए वह जीवन का वृक्ष है। उसको कसकर पकड़े रहनेवाले लोग निस्‍सन्‍देह सुखी हैं।