नीतिवचन 29:15-27

नीतिवचन 29:15-27 HINCLBSI

छड़ी की मार और डांट-डपट से मनुष्‍य को ज्ञान प्राप्‍त होता है; परन्‍तु जिस बच्‍चे को माता-पिता हाथ नहीं लगाते, वह उनके कलंक का कारण बनता है। जब दुर्जन देश पर शासन करते हैं, तब अपराध बढ़ जाते हैं; किन्‍तु धार्मिक मनुष्‍य उनका पतन अपनी आंखों से देखता है। पिता, अपने पुत्र को अनुशासन में रख, तब वह तुझे सुख-चैन से रहने देगा; वह तेरे हृदय को आनन्‍द देगा। नबियों के दर्शन के अभाव में लोगों में प्रभु का डर नहीं रह जाता; किन्‍तु धन्‍य है वह मनुष्‍य जो व्‍यवस्‍था का पालन करता है। कोरे शब्‍दों से सेवक नहीं सुधरता; वह मालिक के शब्‍दों को समझता तो है, पर वह उन पर ध्‍यान नहीं देता। जो मनुष्‍य बातें करने में जल्‍दीबाजी करता है, वह मूर्ख से भी गया-बीता है; उसका भविष्‍य अन्‍धकारमय है। यदि मालिक गुलाम को बचपन से ही लाड़-प्‍यार से पालता है, तो गुलाम बड़ा होने पर उसकी धन-सम्‍पत्ति का उत्तराधिकारी बन बैठता है। जो मनुष्‍य क्रुद्ध स्‍वभाव का है, वह लड़ाई-झगड़ा उत्‍पन्न करता है, जो क्रोध के वश में है, वह अपराध-पर-अपराध करता है। जो मनुष्‍य घमण्‍ड से भरा है, उसको नीचा देखना पड़ता है, किन्‍तु विनम्र मनुष्‍य सम्‍मान का पात्र बनता है। चोर का साथी अपने प्राण का बैरी होता है; अदालत में शपथ खाने पर भी वह सच्‍चाई को प्रकट नहीं करता। जो आदमी से डरता है, वह मानो अपने लिए जाल फैलाता है; किन्‍तु प्रभु से डरनेवाला मनुष्‍य सुरक्षित रहता है। न्‍याय के लिए अनेक लोग शासक का कृपापात्र बनना चाहते हैं; परन्‍तु केवल प्रभु से ही मनुष्‍य न्‍याय पाता है। जैसे अधार्मिक मनुष्‍य से धार्मिक मनुष्‍य घृणा करता है; वैसे ही निष्‍कपट व्यक्‍ति से दुर्जन घृणा करता है।