यदि तुझे शहद खाना पड़े तो उतना ही खाना, जितना आवश्यक हो। क्योंकि अधिक खाने पर तू उल्टी कर देगा। अपने पड़ोसी के घर बार-बार मत जाना; अन्यथा वह तुझसे ऊब जाएगा और तुझसे घृणा करने लगेगा। जो मनुष्य अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी साक्षी देता है, वह मानो गदा, या तलवार या पैना तीर है। संकट में विश्वासघाती मनुष्य पर भरोसा करना मानो सड़े हुए दांत पर अथवा टूटे हुए पैर पर भरोसा करना है। जिस मनुष्य का हृदय उदास है, उसके सामने गीत गानेवाला उस व्यक्ति के समान नासमझ है, जो शीत ऋतु में अपने वस्त्र उतार देता है, जो जले पर नमक छिड़कता है। यदि तेरा शत्रु भूखा है तो उसको खाने के लिए भोजन दे। यदि वह प्यासा है तो उसको पीने के लिए पानी दे। यों तू उसको अपने इस दयापूर्ण व्यवहार से पानी-पानी कर देगा, और प्रभु तुझ को इसका फल देगा। जैसे मौसमी हवा अपने साथ वर्षा लाती है; वैसे ही चुगलखोर जीभ क्रुद्ध दृष्टि उत्पन्न करती है। झगड़ालू पत्नी के साथ घर में रहने की अपेक्षा, छत के कोने में पड़े रहना अच्छा है। जैसे प्यासे प्राण के लिए शीतल जल स्फूर्तिदायक होता है; वैसे ही दूर देश से आया शुभ समाचार। जब धार्मिक मनुष्य का दुर्जन के सम्मुख नैतिक पतन हो जाता है तब वह मानो कीचड़ भरा झरना, अथवा विष भरा जलकुण्ड बन जाता है। जैसे भरपेट शहद खाना अच्छा नहीं; वैसे ही अधिक खुशामद करना ठीक नहीं। जो मनुष्य अपने पर संयम नहीं रखता, वह उस तहस-नहस नगर के समान है, जिसकी शहरपनाह ध्वस्त कर दी गई है।
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