नीतिवचन 22:1-13

नीतिवचन 22:1-13 HINCLBSI

यदि मनुष्‍य को कीर्ति और अपार धन-सम्‍पत्ति के बीच चुनाव करना पड़े तो उसको कीर्ति ही चुनना चाहिए। सोने और चांदी से अधिक बहुमूल्‍य है जनता की प्रसन्नता। समाज में अमीर और गरीब एक-साथ रहते हैं; प्रभु ही उन-सब का सृजक है। चतुर मनुष्‍य खतरे को देख कर अपने को छिपा लेता है; पर भोला मनुष्‍य खतरे के मुंह में चला जाता है, और कष्‍ट भोगता है। जो मनुष्‍य नम्र है, और प्रभु की भक्‍ति करता है, उसको प्रतिफल में मिलता है: धन, सम्‍मान और दीर्घ जीवन। कुटिल मनुष्‍य के मार्ग में कांटे और जाल बिछे रहते हैं; जो मनुष्‍य अपने प्राण की रक्षा करना चाहता है, वह उनसे दूर रहता है। बच्‍चे को उस मार्ग की शिक्षा दो जिस पर उसको चलना चाहिए; और वह बुढ़ापे में भी उससे नहीं हटेगा। धनवान गरीब पर शासन करता है; उधार लेने वाला साहूकार का गुलाम होता है। जो मनुष्‍य अन्‍याय के बीज बोता है, वह विपत्ति की फसल काटता है; उसके क्रोध की छड़ी टूट जाती है। जिसकी आंखों में उदारता झलकती है, उसको प्रभु आशिष देता है, क्‍योंकि वह अपने हिस्‍से की रोटी गरीब को खिलाता है। ज्ञान की हंसी उड़ानेवाले को निकाल दो, तो लड़ाई-झगड़ा भी दूर हो जाएगा; गाली-गलौज, वाद-विवाद शान्‍त हो जाएगा। जो मनुष्‍य अपने हृदय को शुद्ध रखना पसन्‍द करता है; जिसकी बातों में मिठास होती है, राजा उसको अपना मित्र बनाता है। प्रभु की आंखें बुद्धिमान की चौकसी करती हैं; परन्‍तु वह विश्‍वासघाती को उसके दुर्वचनों के कारण उलट देता है। आलसी मनुष्‍य घर के बाहर निकल कर परिश्रम करना नहीं चाहता, अत: वह कहता है; ‘बाहर सिंह है; वह मुझे चौक में मार डालेगा।’