नीतिवचन 17:1-14

नीतिवचन 17:1-14 HINCLBSI

सुख-चैन के साथ सूखी रोटी खाना उस बलि-भोज के मांस से श्रेष्‍ठ है, जो लड़ाई-झगड़े वाले घर में खाया जाता है। जो संतान अपने माता-पिता के लिए लज्‍जा का कारण बनती है, उस पर वह सेवक शासन करता है, जो बुद्धि से कार्य करता है। ऐसा सेवक मालिक की पैतृक सम्‍पत्ति में संतान के साथ बराबर का हिस्‍सा पाता है। जैसे कुठाली चांदी को परखने के लिए, और सोने को परखने के लिए भट्ठी है, वैसे ही मनुष्‍य के हृदय को परखने वाला प्रभु है। दुष्‍कर्मी बुरी बातों को ध्‍यान से सुनता है, झूठा मनुष्‍य दुष्‍टतापूर्ण वचनों पर कान लगाता है। जो मनुष्‍य गरीब का मजाक उड़ाता है, वह उसके सृजक परमेश्‍वर का उपहास करता है; जो मनुष्‍य दूसरे के दु:ख पर हंसता है, उसको परमेश्‍वर निस्‍सन्‍देह दण्‍ड देगा। बूढ़ों की शोभा उनके नाती-पोते हैं, और बाल-बच्‍चों का गौरव उनके माता-पिता। मूर्ख मनुष्‍य के मुख में शुभ वचन फबता नहीं; इससे अधिक अशोभनीय है शासक के मुख से झूठी बात का निकलना। घूस देनेवाला मनुष्‍य घूस को जादू का चिराग समझता है; वह जहाँ-जहाँ जाता है, सफलता उसके चरण चूमती है। जो मनुष्‍य दूसरे के अपराध क्षमा करता है, वह प्रेम का खोजी कहलाता है; पर दूसरों की बातें यहाँ-वहाँ फैलानेवाला मित्रों में फूट कराता है। जितना प्रभाव एक घुड़की का समझदार व्यक्‍ति पर होता है, उतना सौ बार मार खाने पर भी मूर्ख पर नहीं होता। बुरा मनुष्‍य विद्रोह की ही खोज में रहता है। उसको दबाने के लिए क्रूर दूत भेजा जाता है। मूर्खता के आवेश में डूबे हुए मुर्ख मनुष्‍य की अपेक्षा बच्‍चा छीनी हुई रीछनी से मिलना अच्‍छा है। जो मनुष्‍य भलाई के बदले में बुराई करता है, उसके घर में बुराई सदा निवास करती है। लड़ाई-झगड़े का आरम्‍भ मानो बान्‍ध के छेद के समान है, अत: उसके फूटने के पहले ही वहाँ से हट जाओ!

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