नीतिवचन 12:1-14

नीतिवचन 12:1-14 HINCLBSI

जो मनुष्‍य शिक्षा से प्रेम करता है, वह ज्ञान-प्रिय भी होता है; पर जो डांट-फटकार से घृणा करता है, वह पशु के समान नासमझ है। प्रभु भले मनुष्‍य पर कृपा करता है, पर वह बुरी योजनाएं रचनेवाले को दण्‍ड देता है। मनुष्‍य दुष्‍कर्म के द्वारा स्‍थापित नहीं होता; पर धार्मिक मनुष्‍य की जड़ें नहीं उखड़तीं। चरित्रवान पत्‍नी अपने पति की शोभा है, पर व्‍यभिचारिणी पत्‍नी मानो अपने पति की हड्डियों का क्षय है! धार्मिक मनुष्‍य के विचार न्‍यायसंगत होते हैं पर दुर्जन सदा छल-कपट की बातें सोचता है। दुर्जन के शब्‍द हिंसा से भरे होते हैं, किन्‍तु धार्मिक मनुष्‍य के वचन लोगों को बचाते हैं। दुर्जन का पतन होता है, पृथ्‍वी से उसका नामोनिशान मिट जाता है; परन्‍तु धार्मिक मनुष्‍य का वंश सदा बना रहता है। मनुष्‍य की प्रशंसा उसकी सद्बुद्धि के लिए होती है, किन्‍तु कुटिल हृदयवाले मनुष्‍य से सब लोग घृणा करते हैं। साधारण मनुष्‍य, जो मेहनत की सूखी रोटी खाता है, वह बड़प्‍पन-प्रिय मनुष्‍य से श्रेष्‍ठ है जिसके पास खाने के लिए रोटी भी नहीं! धार्मिक मनुष्‍य अपने पशु के प्राण की भी चिन्‍ता करता है; पर दुर्जन की दया भी निर्दयता के समान होती है! जो किसान अपनी भूमि को स्‍वयं जोतता-गोड़ता है, उसको रोटी का अभाव नहीं होता! पर जो मनुष्‍य व्‍यर्थ की योजनाओं में समय गुजारता है, वह नासमझ है! दुर्जनों का सुदृढ़ गढ़ भी ढह जाता है; पर धार्मिक मनुष्‍य की जड़ें गहरी होती हैं। दुर्जन अपने मुंह से निकले शब्‍दों के जाल में स्‍वयं फंस जाता है, पर धार्मिक मनुष्‍य संकट आने पर भी बच जाता है। मनुष्‍य को अपने वचनों के फल के अनुरूप उत्तम वस्‍तुएं प्राप्‍त होती हैं, और वह सन्‍तुष्‍ट होता है; मनुष्‍य जैसा कार्य करता है वैसा ही उसको फल मिलता है।