हमें वे मछलियां याद हैं जो मिस्र देश में हम मुफ्त खाया करते थे। हमें खीरे, खरबूजे, गन्दने, प्याज और लहसून भी याद हैं। अब, हम “मन्ना” खाते-खाते ऊब गए हैं। यहाँ “मन्ना” के अतिरिक्त कुछ भी भोजन-वस्तु दिखाई नहीं देती।’
‘मन्ना’ धनिए के बीज के समान था। उसका रंग-रूप मोती के रंग-रूप के सदृश था। लोग इधर-उधर जाकर उसको एकत्र करते, फिर चक्की में उसको पीसते अथवा ओखली में कूटते थे। तत्पश्चात् उसको तसले में उबालते और उसकी रोटियाँ बनाते थे। उसका स्वाद तेल में बने हुए पूए के स्वाद के समान था। जब रात को पड़ाव पर ओस गिरती थी, तब उसके साथ ‘मन्ना’ भी गिरता था।
मूसा ने लोगों का रोदन सुना। परिवार का प्रत्येक व्यक्ति अपने तम्बू के द्वार पर रो रहा था। प्रभु का क्रोध बहुत भड़क उठा। मूसा को यह बुरा लगा। उन्होंने प्रभु से कहा, ‘तूने क्यों अपने सेवक के साथ बुरा व्यवहार किया? मैंने क्यों तेरी कृपा-दृष्टि प्राप्त नहीं की? तूने क्यों इन सब लोगों का भार मुझ पर डाला? क्या मैंने इन लोगों को गर्भ में धारण किया था? क्या मैंने इन्हें जन्म दिया है कि तू मुझसे कहता है, “जैसे पोषक-पिता शिशु को गोद में ले जाता है वैसे ही तू इन लोगों को उस देश में उठाकर ले जा, जिसको प्रदान करने की शपथ मैंने इनके पूर्वजों से खायी है।” मैं इन सब लोगों को खिलाने के लिए मांस कहां से लाऊं? ये मेरे सम्मुख रो-रोकर कह रहे हैं, “हमें खाने के लिए मांस दीजिए।” मैं अकेला इन सब लोगों का भार वहन करने में असमर्थ हूं। यह भार मेरे लिए बहुत भारी है। यदि तू मुझसे ऐसा व्यवहार करेगा, तो मुझपर कृपा कर, और अविलम्ब मेरा वध कर दे जिससे मुझे अपनी दुर्दशा अपनी आंखों से देखनी न पड़े।’
प्रभु मूसा से बोला, ‘मेरे लिए इस्राएल के सत्तर धर्मवृद्ध एकत्र कर जिनको तू जानता है कि वे लोगों के धर्मवृद्ध और पदाधिकारी हैं। तू उनको मिलन-शिविर में ला। वहाँ वे तेरे साथ खड़े हों। मैं उतरकर वहाँ तुझसे बात करूंगा। जो आत्मा तुझ में है, उसमें से कुछ लेकर उन लोगों में डालूंगा। तब वे तेरे साथ लोगों का भार वहन करेंगे, और तू अकेला उसको नहीं वहन करेगा। तू लोगों से यह कह : कल के लिए स्वयं को शुद्ध करो। तुम कल मांस खाओगे, क्योंकि तुमने प्रभु को अपना रोदन सुनाया है और यह कहा है, “कौन हमें मांस खाने को देगा? हमारी दशा मिस्र देश में इससे अच्छी थी।” अत: प्रभु तुम्हें मांस प्रदान करेगा, और तुम खाओगे। तुम एक दिन नहीं, दो नहीं, पांच नहीं, दस नहीं, बीस दिन नहीं, वरन् महीने भर खाओगे, जब तक वह तुम्हारी नाक से बाहर न निकलने लगे, और तुम्हें उससे घृणा न हो जाए; क्योंकि तुमने प्रभु को जो तुम्हारे मध्य में है, अस्वीकार किया, उसके सम्मुख रोदन किया और कहा, “हम मिस्र देश से क्यों निकल आए?” ’ किन्तु मूसा ने कहा, ‘ये पैदल चलने वाले लोग जिनके मध्य मैं हूँ, छ: लाख हैं, फिर भी तूने कहा, “मैं इन्हें इतना मांस प्रदान करूंगा, कि ये महीने भर उसको खाते रहेंगे!”
क्या उनके लिए गाय-बैल, भेड़-बकरी का वध किया जाएगा ताकि उनको पर्याप्त हो? क्या उनके लिए समुद्र की समस्त मछलियाँ पकड़ी जाएंगी ताकि उनको पर्याप्त हो?’ प्रभु ने मूसा से कहा, ‘क्या मेरा भुजबल घट गया है? अब तू देखेगा कि मेरा वचन तेरे लिए सिद्ध होता है अथवा नहीं।’
मूसा मिलन-शिविर से बाहर गए और उन्होंने लोगों से प्रभु के वचन कहे। मूसा ने उनके सत्तर धर्मवृद्धों को एकत्र किया, और उन्हें तम्बू के चारों ओर खड़ा कर दिया। तब प्रभु मेघ में उतरा। उसने मूसा से वार्तालाप किया और जो आत्मा मूसा पर था उसमें से कुछ लेकर उसने उन सत्तर धर्मवृद्धों पर उण्डेल दिया। जब आत्मा धर्मवृद्धों पर ठहर गया तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु उन्होंने उस दिन के बाद फिर कभी नबूवत नहीं की।
दो मनुष्य पड़ाव में रह गए थे। उनमें एक का नाम एल्दाद और दूसरे का नाम मेदाद था। आत्मा उन पर भी ठहरा। जिनके नाम सत्तर पुरुषों के साथ लिखे गए थे, उनमें ये भी थे, किन्तु वे तम्बू के पास नहीं गए थे। अत: उन्होंने पड़ाव में ही नबूवत की। एक किशोर लड़का दौड़कर मूसा के पास गया। उसने मूसा से कहा, ‘एल्दाद और मेदाद पड़ाव में नबूवत कर रहे हैं।’ मूसा के निजी सेवक तथा उनके मनोनीत व्यक्तियों में से एक, नून के पुत्र यहोशुअ ने कहा, ‘हे मेरे स्वामी मूसा, उनको नबूवत करने से रोक दीजिए।’ किन्तु मूसा ने यहोशुअ से कहा, ‘क्या तुम मेरे कारण उनसे ईष्र्या कर रहे हो? भला होता कि प्रभु के सब लोग नबी होते, और प्रभु अपना आत्मा उन पर उण्डेलता!’ मूसा तथा इस्राएल के सत्तर धर्मवृद्ध पड़ाव को लौट गए।
तब प्रभु की ओर से पवन बहने लगा। वह अपने साथ समुद्र से बटेरें बहा ले आया, और पड़ाव पर उनको गिरा दिया। बटेरें पड़ाव के चारों ओर इधर-उधर एक दिन के मार्ग की दूरी तक, भूमि की सतह पर दो-दो हाथ ऊंचाई तक उड़ती रहीं। लोग दिन-भर, रात-भर और दूसरे दिन भी सबेरे उठकर बटेरें एकत्र करते रहे। जिसने कम बटेरें एकत्र कीं, वे भी सौ से कम नहीं थीं। तत्पश्चात् उन्होंने उनको पड़ाव के चारों ओर सूखने के लिए फैला दिया। मांस अभी उनके दांतों के मध्य फंसा ही था, वे उसको चबा ही न पाए थे कि प्रभु का क्रोध उनके प्रति भड़क उठा। प्रभु ने उन्हें एक व्यापक महामारी से मार डाला। उस स्थान का नाम ‘किब्रोत-हत्तावा’ रखा गया; क्योंकि वहाँ उन्होंने उन लोगों को गाड़ा था, जो स्वादिष्ट भोजन के लिए लालायित थे।
लोगों ने किब्रोत-हत्तावा से हसेरोत की ओर प्रस्थान किया। वे हसेरोत में रहे।