जब फरीसी और यरूशलेम से आए हुए कुछ शास्त्री येशु के पास एकत्र हुए, तो उन्होंने देखा कि येशु के कुछ शिष्य अशुद्ध अर्थात् बिना धोये हाथों से भोजन कर रहे हैं। क्योंकि फरीसी और सामान्य यहूदी धर्मवृद्धों की प्राचीन परम्परा का पालन करते हैं और विधि के अनुसार बिना हाथ धोये भोजन नहीं करते। बाजार से लौट कर वे बिना स्नान किये भोजन नहीं करते और अन्य बहुत-सी परम्परागत प्रथाओं का पालन करते हैं−जैसे प्यालों, सुराहियों, काँसे के बरतनों और खाट-खटियाओं का शुद्धीकरण। इसलिए फरीसियों और शास्त्रियों ने येशु से पूछा, “आपके शिष्य धर्मवृद्धों की परम्परा का पालन क्यों नहीं करते? वे क्यों अशुद्ध हाथों से भोजन करते हैं?” येशु ने उत्तर दिया, “नबी यशायाह ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही नबूवत की है। जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है : ‘ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि ये मनुष्यों के बनाए हुए नियमों को ऐसे सिखाते हैं मानो वे धर्मसिद्धान्त हों।’ तुम लोग मनुष्यों की परम्परा का तो पालन करते हो, किन्तु परमेश्वर की आज्ञा टालते हो!”
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