येशु वहाँ से चले गए और अपने नगर में आए। उनके शिष्य भी उनके साथ गए। वह विश्राम-दिवस पर सभागृह में शिक्षा देने लगे। बहुत-से लोगों ने सुना तो वे अचम्भे में पड़ कर कहने लगे, “यह सब इसे कहाँ से मिला? यह कौन-सी बुद्धि है, जो इसे दी गई है? यह कौन-सी शक्ति है, जिससे यह ऐसे आश्चर्यपूर्ण कार्य करता है? क्या यह वही बढ़ई नहीं है जो मरियम का पुत्र और याकूब, योसेस, यहूदा और शिमोन का भाई है? क्या इसकी बहिनें हमारे बीच नहीं रहती हैं?” इस प्रकार लोगों को येशु के विषय में भ्रम हो गया। येशु ने उन से कहा, “अपने नगर, अपने कुटुम्ब और अपने घर को छोड़कर नबी का अपमान कहीं नहीं होता।” वहाँ वह कोई सामर्थ्य का कार्य नहीं कर सके। उन्होंने केवल कुछ रोगियों पर हाथ रख कर उन्हें स्वस्थ किया। उन लोगों के अविश्वास पर येशु को बड़ा आश्चर्य हुआ।
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