एक स्त्री बारह वर्ष से रक्तस्राव से पीड़ित थी। अनेकानेक वैद्यों के इलाज के कारण उसे बहुत कष्ट सहना पड़ा था और सब कुछ खर्च करने पर भी उसे कोई लाभ नहीं हुआ था, बल्कि उसकी दशा और भी बिगड़ गयी थी। उसने येशु के विषय में सुना था। वह भीड़ में पीछे से आई और उनका वस्त्र छू लिया, क्योंकि वह कहती थी, “यदि मैं उनका वस्त्र ही छू लूँगी तो स्वस्थ हो जाऊंगी।” उसका रक्तस्राव उसी क्षण सूख गया और उसने अपने शरीर में अनुभव किया कि वह रोग से मुक्त हो गयी है। येशु ने भी उसी क्षण अपने में अनुभव किया कि उन से शक्ति निकली है। भीड़ में मुड़ कर उन्होंने पूछा, “किसने मेरा वस्त्र छुआ?” उनके शिष्यों ने उन से कहा, “आप देख रहे हैं कि भीड़ आप पर गिरी पड़ रही है। तब भी आप पूछ रहे हैं, ‘किसने मेरा स्पर्श किया?’ ” जिसने ऐसा किया था, उसका पता लगाने के लिए येशु ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी। वह स्त्री, यह जान कर कि उसके साथ क्या हुआ है, डरती-काँपती हुई आयी और येशु के चरणों पर गिर पड़ी और सब कुछ सच-सच बता दिया। येशु ने उससे कहा, “पुत्री! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है। शान्ति से जाओ और अपने रोग से मुक्त रहो।”
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