जब कुछ दिनों बाद येशु कफरनहूम नगर लौटे, तो यह खबर फैल गयी कि वह घर पर हैं। और इतने लोग इकट्ठे हो गये कि द्वार के सामने भी जगह नहीं रही। येशु उन्हें शुभ संदेश सुना ही रहे थे कि कुछ लोग एक लकुवे के रोगी को चार आदमियों से उठवा कर उनके पास लाये। भीड़ के कारण वे उसे येशु के सामने नहीं ला सके; इसलिए जहाँ येशु थे, उसके ऊपर की छत उन्होंने खोल दी और छेद से लकुवे के रोगी की चारपाई नीचे उतार दी। येशु ने उन लोगों का विश्वास देख कर लकुवे के रोगी से कहा, “पुत्र! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये।” वहाँ कुछ शास्त्री बैठे हुए थे। वे मन में तर्क-वितर्क करने लगे, “यह मनुष्य ऐसे क्यों बोलता है? यह ईश-निन्दा करता है। परमेश्वर के अतिरिक्त कौन पाप क्षमा कर सकता है?” येशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जाना कि वे मन-ही-मन क्या सोच रहे हैं। उन्होंने शास्त्रियों से कहा, “तुम अपने मन में तर्क-वितर्क क्यों कर रहे हो? अधिक सहज क्या है−लकुवे के रोगी से यह कहना, ‘तुम्हारे पाप क्षमा हो गये’, अथवा यह कहना, ‘उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो?’ परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव-पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है”−येशु लकुवे के रोगी से बोले− “मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठा कर घर जाओ।” वह उठ खड़ा हुआ और तुरन्त चारपाई उठा कर सब लोगों के देखते-देखते बाहर चला गया। सब-के-सब बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने यह कहते हुए परमेश्वर की स्तुति की, “हम ने ऐसा कभी नहीं देखा।”
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