मारकुस 10:17-28

मारकुस 10:17-28 HINCLBSI

येशु यात्रा पर निकल ही रहे थे कि एक व्यक्‍ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, “भले गुरु! शाश्‍वत जीवन का उत्तराधिकारी बनने के लिए मुझे क्‍या करना चाहिए?” येशु ने उससे कहा, “मुझे भला क्‍यों कहते हो? परमेश्‍वर को छोड़ और कोई भला नहीं। तुम आज्ञाओं को जानते हो : हत्‍या मत करो, व्‍यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता पिता का आदर करो।” उसने उत्तर दिया, “गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ।” येशु ने उसे ध्‍यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्‍होंने उससे कहा, “तुम में एक बात की कमी है। जाओ; जो तुम्‍हारा है, उसे बेच कर गरीबों को दे दो और स्‍वर्ग में तुम्‍हें धन मिलेगा। तब आ कर मेरा अनुसरण करो।” यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया और वह उदास हो कर चला गया, क्‍योंकि उसके पास बहुत धन-सम्‍पत्ति थी। येशु ने चारों ओर दृष्‍टि दौड़ायी और अपने शिष्‍यों से कहा, “धनवानों के लिए परमेश्‍वर के राज्‍य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!” शिष्‍य यह बात सुन कर चकित रह गये। परन्‍तु येशु ने उनसे फिर कहा, “बच्‍चो! परमेश्‍वर के राज्‍य में प्रवेश करना कितना कठिन है! परमेश्‍वर के राज्‍य में धनवान के प्रवेश करने की अपेक्षा ऊंट का सूई के छेद से होकर निकलना अधिक सरल है।” शिष्‍य और भी विस्‍मित हो गये और एक-दूसरे से बोले, “तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?” येशु ने उन्‍हें एकटक देखा और कहा, “मनुष्‍यों के लिए तो यह असम्‍भव है, किन्‍तु परमेश्‍वर के लिए नहीं; क्‍योंकि परमेश्‍वर के लिए सब कुछ सम्‍भव है।” पतरस बोल उठा, “देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़कर आपके अनुयायी बन गये हैं।”