वहाँ से विदा हो कर येशु यहूदा प्रदेश के सीमा-क्षेत्र और यर्दन नदी के उस पार के प्रदेश में आए। एक विशाल जनसमूह फिर उनके पास एकत्र हो गया और उन्होंने अपनी आदत के अनुसार लोगों को फिर शिक्षा दी।
फरीसी सम्प्रदाय के सदस्य येशु के पास आए और उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उन्होंने यह प्रश्न किया, “क्या अपनी पत्नी का परित्याग करना पुरुष के लिए उचित है?” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या आदेश दिया है?” उन्होंने कहा, “मूसा ने तो त्यागपत्र लिख कर पत्नी का परित्याग करने की अनुमति दी है।” येशु ने उन से कहा, “उन्होंने तुम्हारे हृदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा है। किन्तु सृष्टि के आरम्भ ही से परमेश्वर ने उन्हें नर और नारी बनाया; इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ ही रहेगा और वे दोनों एक शरीर होंगे। इस प्रकार अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।”
शिष्यों ने, घर पहुँच कर, इस सम्बन्ध में येशु से फिर प्रश्न किया और उन्होंने यह उत्तर दिया, “जो अपनी पत्नी का परित्याग करता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह पहली के विरुद्ध व्यभिचार करता है। और यदि पत्नी अपने पति का परित्याग करती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह भी व्यभिचार करती है।”
कुछ लोग येशु के पास बच्चों को लाए कि वह उन्हें स्पर्श करें; परन्तु शिष्यों ने लोगों को डाँटा। येशु यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें मत रोको, क्योंकि परमेश्वर का राज्य उन-जैसे लोगों का ही है। मैं तुम से सच कहता हूँ; जो मनुष्य छोटे बालक की तरह परमेश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।” तब येशु ने बच्चों को गोद में लिया और उन पर हाथ रख कर उन्हें आशीर्वाद दिया।
येशु यात्रा पर निकल ही रहे थे कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उनके सामने घुटने टेक कर उसने यह पूछा, “भले गुरु! शाश्वत जीवन का उत्तराधिकारी बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?” येशु ने उससे कहा, “मुझे भला क्यों कहते हो? परमेश्वर को छोड़ और कोई भला नहीं। तुम आज्ञाओं को जानते हो : हत्या मत करो, व्यभिचार मत करो, चोरी मत करो, झूठी गवाही मत दो, किसी को मत ठगो, अपने माता पिता का आदर करो।”
उसने उत्तर दिया, “गुरुवर! इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूँ।” येशु ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा। उन्होंने उससे कहा, “तुम में एक बात की कमी है। जाओ; जो तुम्हारा है, उसे बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हें धन मिलेगा। तब आ कर मेरा अनुसरण करो।” यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया और वह उदास हो कर चला गया, क्योंकि उसके पास बहुत धन-सम्पत्ति थी।
येशु ने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी और अपने शिष्यों से कहा, “धनवानों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन होगा!” शिष्य यह बात सुन कर चकित रह गये। परन्तु येशु ने उनसे फिर कहा, “बच्चो! परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने की अपेक्षा ऊंट का सूई के छेद से होकर निकलना अधिक सरल है।” शिष्य और भी विस्मित हो गये और एक-दूसरे से बोले, “तो फिर किसका उद्धार हो सकता है?” येशु ने उन्हें एकटक देखा और कहा, “मनुष्यों के लिए तो यह असम्भव है, किन्तु परमेश्वर के लिए नहीं; क्योंकि परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।”
पतरस बोल उठा, “देखिए, हम लोग अपना सब कुछ छोड़कर आपके अनुयायी बन गये हैं।” येशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ : ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और शुभ समाचार के लिए घर, भाइयों, बहिनों, माता, पिता, बाल-बच्चों अथवा खेतों को छोड़ दिया हो और जो अब, इस लोक में सौ गुना न पाए−घर, भाई, बहिनें, माताएँ, बाल-बच्चे और खेत, साथ ही साथ अत्याचार और आनेवाले युग में शाश्वत जीवन। परन्तु अनेक जो प्रथम हैं, वे अंतिम हो जाएँगे और जो अंतिम हैं, वे प्रथम हो जाएँगे।”