नबी यशायाह के ग्रन्थ में लिखा है, “परमेश्वर कहता है : देखो, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ। वह तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा। निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज : ‘प्रभु का मार्ग तैयार करो; उसके पथ सीधे कर दो।’ ” इसी के अनुसार योहन बपतिस्मादाता निर्जन प्रदेश में प्रकट हुए। वह पापक्षमा के लिए पश्चात्ताप के बपतिस्मा का उपदेश देते थे। समस्त यहूदा प्रदेश और सब यरूशलेम-निवासी योहन के पास आते और अपने पाप स्वीकार करते हुए यर्दन नदी में उन से बपतिस्मा ग्रहण करते थे। योहन ऊंट के रोओं का वस्त्र पहने और कमर में चमड़े का पट्टा बाँधे रहते थे। उनका आहार टिड्डियाँ और वन का मधु था। वह अपने उपदेश में कहते थे, “मुझ से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति मेरे बाद आने वाले हैं। मैं तो झुक कर उनके जूते का फीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ। मैंने तुम लोगों को जल से बपतिस्मा दिया है, परन्तु वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।” उन दिनों येशु गलील प्रदेश के नासरत नगर से आए। उन्होंने यर्दन नदी में योहन से बपतिस्मा ग्रहण किया। वह पानी से निकल ही रहे थे कि उन्होंने स्वर्ग को खुलते और आत्मा को अपने ऊपर कपोत के सदृश उतरते देखा और स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी, “तू मेरा प्रिय पुत्र है। मैं तुझ पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।”
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