मत्ती 25:14-28

मत्ती 25:14-28 HINCLBSI

“स्‍वर्ग का राज्‍य उस मनुष्‍य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्‍हें अपनी सम्‍पत्ति सौंप दी। उसने प्रत्‍येक को उसकी योग्‍यता के अनुसार दिया : एक सेवक को सोने के पाँच सिक्‍के दूसरे को सोने के दो सिक्‍के और तीसरे को सोने का एक सिक्‍का दिया। इसके बाद वह विदेश चला गया। जिसे पाँच सिक्‍के मिले थे, उसने तुरन्‍त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच सिक्‍के कमा लिये। इसी तरह जिसे दो सिक्‍के मिले थे, उसने और दो सिक्‍के कमा लिये। लेकिन जिसे एक सिक्‍का मिला था, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्‍वामी का धन छिपा दिया। “बहुत समय बाद उन सेवकों के स्‍वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया। जिसे पाँच सिक्‍के मिले थे, उसने और पाँच सिक्‍के ला कर कहा, ‘स्‍वामी! आपने मुझे पाँच सिक्‍के सौंपे थे। देखिए, मैंने और पाँच सिक्‍के कमाए।’ उसके स्‍वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्‍हें बहुत वस्‍तुओं पर अधिकार दूँगा। अपने स्‍वामी के आनन्‍द में सहभागी हो।’ इसके बाद वह आया, जिसे दो सिक्‍के मिले थे। उसने कहा, ‘स्‍वामी! आपने मुझे दो सिक्‍के सौंपे थे। देखिए, मैंने और दो सिक्‍के कमाए।’ उसके स्‍वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्‍हें बहुत वस्‍तुओं पर अधिकार दूँगा। अपने स्‍वामी के आनन्‍द में सहभागी हो।’ अन्‍त में वह आया, जिसे एक सिक्‍का मिला था। उसने कहा, ‘स्‍वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर व्यक्‍ति हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ काटते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं। इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह रहा आपका धन!’ स्‍वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘दुष्‍ट और आलसी सेवक! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ काटता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ, तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे ब्‍याज सहित ले लेता। सेवको! यह सिक्‍का इस से ले लो और जिसके पास दस सिक्‍के हैं, उस को दे दो

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