मत्ती 25:1-30

मत्ती 25:1-30 HINCLBSI

तब स्‍वर्ग का राज्‍य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दूल्‍हे की अगवानी करने निकलीं। उन में से पाँच मूर्ख थीं और पाँच बुद्धिमती। मूर्ख कुँआरियाँ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं। बुद्धिमती कुँआरियाँ अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्‍पियों में तेल भी लायीं। दूल्‍हे के आने में देर हो जाने पर सब ऊंघने लगीं और सो गयीं। आधी रात को पुकार होने लगी, ‘देखो, दूल्‍हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’ तब सब कुँआरियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं। मूर्ख कुँआरियों ने बुद्धिमतियों से कहा, ‘अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्‍योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’। बुद्धिमतियों ने उत्तर दिया, ‘क्‍या जाने, कहीं हमारे और तुम्‍हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्‍छा हो, तुम लोग दुकान जाकर अपने लिए तेल खरीद लो।’ वे तेल खरीदने गयी ही थीं कि दूल्‍हा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्‍होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्‍द हो गया। बाद में शेष कुँआरियाँ आयीं और बोलीं, ‘प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए।’ इस पर उसने उत्तर दिया, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ : मैं तुम्‍हें नहीं जानता।’ “इसलिए जागते रहो, क्‍योंकि तुम न तो उस दिन को जानते हो और न उस घड़ी को। “स्‍वर्ग का राज्‍य उस मनुष्‍य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्‍हें अपनी सम्‍पत्ति सौंप दी। उसने प्रत्‍येक को उसकी योग्‍यता के अनुसार दिया : एक सेवक को सोने के पाँच सिक्‍के दूसरे को सोने के दो सिक्‍के और तीसरे को सोने का एक सिक्‍का दिया। इसके बाद वह विदेश चला गया। जिसे पाँच सिक्‍के मिले थे, उसने तुरन्‍त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच सिक्‍के कमा लिये। इसी तरह जिसे दो सिक्‍के मिले थे, उसने और दो सिक्‍के कमा लिये। लेकिन जिसे एक सिक्‍का मिला था, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्‍वामी का धन छिपा दिया। “बहुत समय बाद उन सेवकों के स्‍वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया। जिसे पाँच सिक्‍के मिले थे, उसने और पाँच सिक्‍के ला कर कहा, ‘स्‍वामी! आपने मुझे पाँच सिक्‍के सौंपे थे। देखिए, मैंने और पाँच सिक्‍के कमाए।’ उसके स्‍वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्‍हें बहुत वस्‍तुओं पर अधिकार दूँगा। अपने स्‍वामी के आनन्‍द में सहभागी हो।’ इसके बाद वह आया, जिसे दो सिक्‍के मिले थे। उसने कहा, ‘स्‍वामी! आपने मुझे दो सिक्‍के सौंपे थे। देखिए, मैंने और दो सिक्‍के कमाए।’ उसके स्‍वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्‍हें बहुत वस्‍तुओं पर अधिकार दूँगा। अपने स्‍वामी के आनन्‍द में सहभागी हो।’ अन्‍त में वह आया, जिसे एक सिक्‍का मिला था। उसने कहा, ‘स्‍वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर व्यक्‍ति हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ काटते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं। इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह रहा आपका धन!’ स्‍वामी ने उसे उत्तर दिया, ‘दुष्‍ट और आलसी सेवक! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ काटता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ, तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे ब्‍याज सहित ले लेता। सेवको! यह सिक्‍का इस से ले लो और जिसके पास दस सिक्‍के हैं, उस को दे दो; क्‍योंकि जिसके पास है, उस को और दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा; लेकिन जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके पास है। और इस निकम्‍मे सेवक को बाहर, अन्‍धकार में फेंक दो। वहाँ यह रोएगा और दाँत पीसेगा।