मत्ती 22:34-46

मत्ती 22:34-46 HINCLBSI

जब फरीसियों ने यह सुना कि येशु ने सदूकियों का मुँह बन्‍द कर दिया है, तब वे इकट्ठे हो गये और उन में से एक व्‍यवस्‍था के आचार्य ने येशु की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा, “गुरुवर! व्‍यवस्‍था-ग्रन्‍थ में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” येशु ने उस से कहा, “ ‘अपने प्रभु परमेश्‍वर को अपने सम्‍पूर्ण हृदय, सम्‍पूर्ण प्राण और सम्‍पूर्ण बुद्धि से प्रेम करो।’ यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है। दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है : ‘अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करो।’ इन्‍हीं दो आज्ञाओं पर समस्‍त व्‍यवस्‍था और नबियों की शिक्षा अवलम्‍बित है।” फरीसी अभी वहाँ एकत्र थे। येशु ने फरीसियों से पूछा, “मसीह के विषय में तुम लोगों का क्‍या विचार है; वह किसके वंशज हैं?” उन्‍होंने उत्तर दिया, “दाऊद के।” इस पर येशु ने उनसे कहा, “तब दाऊद आत्‍मा की प्रेरणा से उन्‍हें प्रभु क्‍यों कहते हैं? उनका कथन है : ‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा, तुम सिंहासन की दाहिनी ओर बैठो, जब तक मैं तुम्‍हारे शत्रुओं को तुम्‍हारे पैरों तले न डाल दूँ।’ “यदि दाऊद उन्‍हें प्रभु कहते हैं, तो वह उनके वंशज कैसे हो सकते हैं?” इसके उत्तर में कोई भी फरीसी येशु से एक शब्‍द भी नहीं बोल सका और उस दिन से किसी को उन से और प्रश्‍न करने का साहस नहीं हुआ।