मत्ती 21:18-46

मत्ती 21:18-46 HINCLBSI

सबेरे नगर को लौटते समय येशु को भूख लगी। उन्‍होंने मार्ग के किनारे अंजीर का एक पेड़ देखा। वह उसके पास आए। परन्‍तु उन्‍होंने उस में पत्तों को छोड़कर और कुछ नहीं पाया। येशु ने पेड़ से कहा, “अब से तुझ में फिर कभी फल न लगे।” और उसी क्षण अंजीर का वह पेड़ सूख गया। यह देख कर शिष्‍य अचम्‍भे में पड़ गये और बोले, “अंजीर का यह पेड़ तुरन्‍त कैसे सूख गया है?” येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ : यदि तुम विश्‍वास करो और सन्‍देह न करो, तो तुम न केवल वह करोगे, जो मैंने अंजीर के पेड़ के साथ किया है; परन्‍तु यदि तुम इस पहाड़ से यह कहोगे, ‘उठ और समुद्र में जा गिर’, तो वैसा ही हो जाएगा। और जो कुछ तुम विश्‍वास के साथ प्रार्थना में माँगोगे, वह तुम्‍हें मिल जाएगा।” येशु मन्‍दिर में लौटे। जब वह लोगों को शिक्षा दे रहे थे, तब महापुरोहित और समाज के धर्मवृद्ध उनके पास आ कर बोले, “आप किस अधिकार से ये कार्य कर रहे हैं? किसने आप को यह अधिकार दिया है?” येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “मैं भी आप लोगों से एक प्रश्‍न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आप को बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से ये कार्य कर रहा हूँ। योहन का बपतिस्‍मा किस की ओर से था? स्‍वर्ग की ओर से या मनुष्‍यों की ओर से?” वे यह कहते हुए आपस में तर्क-वितर्क करने लगे, “यदि हम कहें : ‘स्‍वर्ग की ओर से’, तो वह हम से कहेंगे, ‘तब आप लोगों ने योहन पर विश्‍वास क्‍यों नहीं किया?’ यदि हम कहें : ‘मनुष्‍यों की ओर से’, तो हमें जनता से डर लगता है; क्‍योंकि सब योहन को नबी मानते हैं।” इसलिए उन्‍होंने येशु को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते।” इस पर येशु ने उन से कहा, “तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊंगा कि मैं किस अधिकार से ये कार्य कर रहा हूँ। “तुम लोगों का क्‍या विचार है? किसी मनुष्‍य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जा कर कहा, ‘बेटा! जाओ, आज अंगूर-उद्यान में काम करो।’ उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊंगा’, किन्‍तु बाद में उसे पश्‍चात्ताप हुआ और वह गया। पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ‘जी हाँ, पिताजी! मैं जाता हूँ।’ किन्‍तु वह नहीं गया। दोनों में से किसने अपने पिता की इच्‍छा पूरी की?” उन्‍होंने येशु को उत्तर दिया, “पहले ने।” इस पर येशु ने उन से कहा, “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ : चुंगी-अधिकारी और वेश्‍याएँ तुम लोगों से पहले परमेश्‍वर के राज्‍य में प्रवेश कर रहे हैं। योहन धर्म का मार्ग दिखाते हुए तुम्‍हारे पास आए और तुम लोगों ने उन पर विश्‍वास नहीं किया, परन्‍तु चुंगी-अधिकारियों और वेश्‍याओं ने उन पर विश्‍वास किया। तुम ने यह देखा; फिर भी तुम ने बाद में पश्‍चात्ताप नहीं किया और न उन पर विश्‍वास किया। “एक और दृष्‍टान्‍त सुनो : एक जमींदार था। उसने अंगूर का एक उद्यान लगाया और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा। उसने उसमें रस का कुण्‍ड खुदवाया और पक्‍का मचान बनवाया। तब उसे किसानों को पट्टे पर दे कर वह परदेश चला गया। फसल का समय आने पर उसने अपनी फसल का हिस्‍सा वसूल करने के लिए किसानों के पास अपने सेवकों को भेजा। किन्‍तु किसानों ने उसके सेवकों को पकड़ कर उन में से किसी को मारा-पीटा, किसी की हत्‍या कर दी और किसी को पत्‍थरों से मार डाला। इसके बाद उसने पहले से अधिक सेवकों को भेजा और किसानों ने उनके साथ भी वैसा ही किया। अन्‍त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। किन्‍तु पुत्र को देख कर किसानों ने एक दूसरे से कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी पैतृक-सम्‍पत्ति पर कब्‍जा कर लें।’ उन्‍होंने उसे पकड़ लिया और अंगूर-उद्यान से बाहर निकाल कर मार डाला। जब अंगूर-उद्यान का स्‍वामी लौटेगा, तो वह उन किसानों का क्‍या करेगा?” उन्‍होंने येशु से कहा, “वह उन दुष्‍टों का सर्वनाश करेगा और अपने अंगूर-उद्यान का पट्टा दूसरे किसानों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्‍सा देते रहेंगे”। येशु ने उनसे कहा, “क्‍या तुम लोगों ने धर्मग्रन्‍थ में कभी यह नहीं पढ़ा : ‘कारीगरों ने जिस पत्‍थर को बेकार समझ कर फेंक दिया था, वही कोने की नींव का पत्‍थर बन गया है। यह प्रभु का कार्य है और हमारी दृष्‍टि में अद्भुत है।’? इसलिए मैं तुम लोगों से कहता हूँ : परमेश्‍वर का राज्‍य तुम से ले लिया जाएगा और ऐसे राष्‍ट्र को दिया जाएगा, जो उसका उचित फल उत्‍पन्न करेगा। “[जो इस पत्‍थर पर गिरेगा, वह चूर-चूर हो जाएगा और जिस पर यह पत्‍थर गिरेगा, उस को पीस डालेगा।]” महापुरोहित और फरीसी येशु के दृष्‍टान्‍तों को सुनकर समझ गये कि वह हमारे विषय में कह रहे हैं। वे उन्‍हें गिरफ्‍तार करना चाहते थे, किन्‍तु वे जनता से डरते थे; क्‍योंकि वह येशु को नबी मानती थी।