येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता। कहीं ऐसा न हो कि ये रास्ते में मूच्छिर्त हो जाएँ।” शिष्यों ने उनसे कहा, “इस निर्जन स्थान में हमें इतनी रोटियाँ कहाँ से मिलेंगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को खिला सकें?” येशु ने उन से पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात, और थोड़ी-सी छोटी मछलियाँ।” येशु ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया। येशु ने वे सात रोटियाँ और मछलियाँ लीं; परमेश्वर को धन्यवाद दिया, उनको तोड़ा और अपने शिष्यों को दिया और फिर शिष्यों ने लोगों को दिया। सब ने खाया और वे खा कर तृप्त हो गये और शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों से भरे सात टोकरे उठाये। भोजन करने वालों में स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त चार हजार पुरुष थे। येशु ने लोगों को विदा किया और वह नाव पर चढ़ कर मगदान नगर के क्षेत्र में आए।
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