येशु ने वहाँ से विदा हो कर सोर और सदोम प्रदेशों के लिए प्रस्थान किया। उस क्षेत्र की एक कनानी स्त्री आयी और पुकार-पुकार कर कहने लगी, “प्रभु! दाऊद के वंशज! मुझ पर दया कीजिए। मेरी पुत्री बुरी तरह भूत से जकड़ी हुई है।” येशु ने उसे उत्तर नहीं दिया। उनके शिष्यों ने पास आ कर उन से यह निवेदन किया, “उसकी बात मान कर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती आ रही है।” येशु ने उत्तर दिया, “मैं केवल इस्राएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।” परन्तु वह स्त्री येशु के सामने आयी और उनके चरणों पर गिर पड़ी। उसने कहा, “प्रभु! मेरी सहायता कीजिए।” येशु ने उत्तर दिया, “बच्चों की रोटी ले कर कुत्तों के सामने डालना ठीक नहीं है।” उसने कहा, “जी हाँ प्रभु! फिर भी कुत्ते स्वामी की मेज से गिरा हुआ चूर-चार खाते ही हैं।” इस पर येशु ने उत्तर दिया, “नारी! तुम्हारा विश्वास महान है। जैसा तुम चाहती हो, वैसा ही तुम्हारे लिए हो।” और उसी क्षण उसकी पुत्री स्वस्थ हो गयी। येशु वहाँ से चले गये और गलील की झील के तट पर पहुँचे। वह एक पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ बैठ गये। भीड़-की-भीड़ उनके पास आने लगी। वे लंगड़े, अन्धे, लूले, गूँगे और बहुत-से दूसरे रोगियों को अपने साथ लाये थे। उन्होंने उनको येशु के चरणों में रख दिया और येशु ने उन्हें स्वस्थ कर दिया। जनसमूह ने देखा कि गूँगे बोल रहे हैं, लूले भले-चंगे हो रहे हैं, लंगड़े चल रहे हैं और अन्धे देखने लगे हैं। वे बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति की। येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता। कहीं ऐसा न हो कि ये रास्ते में मूच्छिर्त हो जाएँ।” शिष्यों ने उनसे कहा, “इस निर्जन स्थान में हमें इतनी रोटियाँ कहाँ से मिलेंगी कि हम इतनी बड़ी भीड़ को खिला सकें?” येशु ने उन से पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात, और थोड़ी-सी छोटी मछलियाँ।” येशु ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया। येशु ने वे सात रोटियाँ और मछलियाँ लीं; परमेश्वर को धन्यवाद दिया, उनको तोड़ा और अपने शिष्यों को दिया और फिर शिष्यों ने लोगों को दिया। सब ने खाया और वे खा कर तृप्त हो गये और शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ों से भरे सात टोकरे उठाये। भोजन करने वालों में स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त चार हजार पुरुष थे। येशु ने लोगों को विदा किया और वह नाव पर चढ़ कर मगदान नगर के क्षेत्र में आए।
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