यरूशलेम के कुछ फरीसी और शास्त्री येशु के पास आए और यह बोले, “आपके शिष्य धर्मवृद्धों की परम्परा क्यों तोड़ते हैं? वे बिना हाथ धोये भोजन करते हैं।” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “और तुम लोग अपनी ही परम्परा के नाम पर परमेश्वर की आज्ञा क्यों भंग करते हो? परमेश्वर ने कहा : ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करो, और जो अपने पिता या अपनी माता को बुरा कहे, उसे प्राण-दण्ड दिया जाए।’ परन्तु तुम लोग कहते हो कि यदि कोई अपने पिता या अपनी माता से कहे, ‘आप को मुझ से जो लाभ हो सकता था, वह परमेश्वर को अर्पित है,’ तो उसके लिए माता-पिता का आदर करना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार तुम अपनी परम्परा का पालन कर परमेश्वर का वचन रद्द कर देते हो। ढोंगियो! नबी यशायाह ने यह कह कर तुम्हारे विषय में ठीक ही नबूवत की है : ‘ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी उपासना करते हैं; क्योंकि ये मनुष्यों के बनाए हुए नियमों को ऐसे सिखाते हैं, मानो वे धर्म-सिद्धान्त हों।’ ” येशु ने लोगों को अपने पास बुला कर कहा, “तुम लोग मेरी बात सुनो और समझो। जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता; बल्कि जो मुँह से बाहर निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।” तब शिष्य येशु के पास आ कर उन से बोले, “क्या आप जानते हैं कि आपके इस कथन से फरीसियों को बुरा लगा है?” येशु ने उत्तर दिया, “जो पौधा मेरे स्वर्गिक पिता ने नहीं रोपा है, वह उखाड़ा जाएगा। उन्हें रहने दो; वे अन्धों के अन्धे पथप्रदर्शक हैं। यदि अन्धा अन्धे को मार्ग दिखाए तो दोनों ही गड्ढे में गिरेंगे।” इस पर पतरस ने कहा, “यह दृष्टान्त हमें समझा दीजिए।” येशु ने उत्तर दिया, “क्या तुम लोग भी अब तक नासमझ हो? क्या तुम यह नहीं समझते कि जो मुँह में जाता है, वह पेट से होकर शौच में निकल जाता है? परन्तु जो मुँह से बाहर निकलता है, वह मन से आता है और वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्री-गमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा − ये सब मन से निकलते हैं। ये ही बातें मनुष्य को अशुद्ध करती हैं; बिना हाथ धोये भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता।”
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