‘ओ पुरोहितो, अब तुम्हारे लिए यह आज्ञा है: यदि तुम मेरी यह बात नहीं सुनोगे, मेरे नाम की महिमा करने पर ध्यान नहीं दोगे, तो मैं, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु, यह कहता हूं: मैं तुम पर शाप प्रेषित करूंगा। मैं तुम्हारे वरदानों को शापों में बदल दूंगा। निस्सन्देह मैंने उन्हें शाप में बदल दिया है, क्योंकि तुमने मेरे नाम की महिमा करने पर ध्यान नहीं दिया। देखो, मैं तुम्हारी संतान को ताड़ित करूंगा। तुम्हारे मुंह पर तुम्हारे बलि-पशुओं की अंतड़ियां फेंकूंगा। मैं अपने सम्मुख से तुम्हें निकाल दूंगा। मैं, स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु यह कहता हूं: तब तुम्हें ज्ञात होगा कि यह आज्ञा मैंने तुम्हें दी है जिससे लेवी के साथ स्थापित मेरा विधान न टूटे। लेवी से स्थापित मेरा विधान जीवन और शान्ति का विधान था। मैंने उसे जीवन और शान्ति दी थी जिससे वह मेरे प्रति श्रद्धा-भक्ति रखे। उसने ऐसा किया भी था। वह मेरे नाम के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखता था। वह सत्य व्यवस्था उच्चारता था। उसके ओंठों से झूठ कभी नहीं निकलता था। वह शान्ति और धार्मिकता के साथ मेरा अनुसरण करता था। उसने अनेक लोगों को अधर्म से विमुख किया था। ‘पुरोहित को अपने मुंह से ज्ञान की रक्षा करनी चाहिए। उसके मुंह से लोगों को व्यवस्था प्राप्त होनी चाहिए। पुरोहित स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का सन्देशवाहक है। परन्तु ओ पुरोहितो! तुमने मेरा मार्ग त्याग दिया। तुम्हारी शिक्षा के कारण अनेक लोगों को ठोकर लगी। स्वर्गिक सेनाओं का प्रभु, मैं यह कहता हूं: तुमने लेवी के साथ स्थापित मेरे विधान को भ्रष्ट किया। अत: मैंने भी सब लोगों के सम्मुख तुम्हें भी निकृष्ट और अधम बनाया; क्योंकि तुमने मेरी व्यवस्था के अनुसार आचरण नहीं किया, तुम मेरी व्यवस्था के प्रति निष्पक्ष नहीं हो।’
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