इसके कुछ समय बाद येशु नाईन नगर को गये। उनके साथ उनके शिष्य और एक विशाल जनसमूह भी गया। जब वे नगर के प्रवेश-द्वार के निकट पहुँचे, तब लोग एक मुरदे को बाहर ले जा रहे थे। वह अपनी माँ का एकलौता पुत्र था और माँ विधवा थी। नगर के बहुत-से लोग उसके साथ थे। माँ को देख कर प्रभु का हृदय दया से भर गया। उन्होंने उससे कहा, “मत रोओ”, और पास आ कर उन्होंने अरथी को स्पर्श किया। इस पर अरथी को कंधा देने वाले रुक गये। येशु ने कहा, “युवक! मैं तुम से कहता हूँ, उठो!” मुरदा उठ बैठा और बोलने लगा। येशु ने उसको उसकी माँ को सौंप दिया। सब लोगों पर भय छा गया और वे यह कहते हुए परमेश्वर की महिमा करने लगे, “हमारे बीच महान् नबी उत्पन्न हुए हैं और परमेश्वर ने अपनी प्रजा की सुध ली है।” येशु के विषय में यह बात सारे यहूदा देश और आसपास के समस्त क्षेत्र में फैल गयी।
योहन के शिष्यों ने योहन को इन सब बातों की खबर सुनायी। योहन ने अपने दो शिष्यों को बुला कर प्रभु के पास यह पूछने भेजा, “क्या आप वही हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?” इन दो शिष्यों ने येशु के पास आकर कहा, “योहन बपतिस्मादाता ने हमें आपके पास यह पूछने भेजा है−क्या आप वही हैं जो आने वाले हैं या हम किसी दूसरे की प्रतीक्षा करें?”
उसी समय येशु ने बहुतों को बीमारियों, कष्टों और दुष्टात्माओं से मुक्त किया और बहुत-से अन्धों को दृष्टि प्रदान की। उन्होंने योहन के शिष्यों से कहा, “जाओ, तुम जो सुनते और देखते हो, उसे योहन को बता दो कि अन्धे देखते हैं, लंगड़े चलते हैं, कुष्ठ-रोगी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं, और गरीबों को शुभ समाचार सुनाया जाता है। धन्य है वह, जो मेरे विषय में भ्रम में नहीं पड़ता।”
योहन द्वारा भेजे हुए शिष्यों के चले जाने के बाद येशु लोगों से योहन के विषय में कहने लगे, “तुम निर्जन प्रदेश में क्या देखने गये थे? हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? नहीं! तो, तुम क्या देखने गये थे? बढ़िया कपड़े पहने मनुष्य को? नहीं! कीमती वस्त्र पहनने वाले और भोग-विलास में जीवन बिताने वाले लोग महलों में रहते हैं। फिर तुम क्या देखने निकले थे? किसी नबी को? निश्चय ही! मैं तुम से कहता हूँ−नबी से भी महान् व्यक्ति को। यह वही है, जिसके विषय में धर्मग्रन्थ में लिखा है : ‘परमेश्वर कहता है−देखो, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ। वह तुम्हारे आगे तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा।’
“मैं तुम से कहता हूँ : जो स्त्रियों से उत्पन्न हुए हैं, उन में योहन से महान् कोई नहीं। फिर भी परमेश्वर के राज्य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है।”
सारी जनता और चुंगी-अधिकारियों ने जब यह सुना, तो उन्होंने योहन का बपतिस्मा लेने के कारण परमेश्वर की धार्मिकता स्वीकार की। परन्तु फरीसियों और व्यवस्था के आचार्यों ने उनका बपतिस्मा ग्रहण नहीं कर अपने विषय में परमेश्वर की योजना व्यर्थ कर दी।
येशु ने आगे कहा, “मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किस से करूँ? वे किसके सदृश हैं? वे बाजार में बैठे हुए बालकों के सदृश हैं, जो एक-दूसरे को पुकार कर कहते हैं :
‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी,
पर तुम नहीं नाचे;
हमने विलाप किया,
किन्तु तुम नहीं रोये।’
योहन बपतिस्मादाता आए। वह न रोटी खाते और न दाखरस पीते हैं। इस पर भी तुम कहते हो, ‘उनमें भूत लगा है।’ मानव-पुत्र आया। वह आम आदमी के समान खाता-पीता है और तुम कहते हो, ‘देखो, यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है। चुंगी-अधिकारियों और पापियों का मित्र है।’ किन्तु परमेश्वर की प्रज्ञ उसकी समस्त प्रजा द्वारा प्रमाणित हुई है।”