जनता को अपने ये सब उपदेश सुनाने के बाद येशु कफरनहूम नगर में आए। वहाँ किसी रोमन शतपति का अत्यन्त प्रिय सेवक गंभीर रूप से बीमार था, और मृत्यु के निकट था। जब शतपति ने येशु की चर्चा सुनी तो उसने यहूदियों के कुछ धर्मवृद्धों को येशु के पास यह निवेदन करने के लिए भेजा कि वह आ कर उसके सेवक को स्वस्थ करें। वे येशु के पास आए और आग्रह के साथ उनसे निवेदन किया। उन्होंने कहा, “वह शतपति इस योग्य है कि आप उसके लिए ऐसा करें। वह हमारी कौम से प्रेम करता है और उसी ने हमारे लिए सभागृह बनवाया है।” येशु उनके साथ चले। वह उसके घर के निकट पहुँचे ही थे कि शतपति ने मित्रों द्वारा येशु के पास यह कहला भेजा, “प्रभु! आप कष्ट न करें, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आएँ। इसलिए मैंने अपने को इस योग्य नहीं समझा कि आपके पास आऊं। आप एक शब्द ही कह दीजिए और मेरा सेवक स्वस्थ हो जाएगा। मैं स्वयं शासन के अधीन रहता हूँ और सैनिक मेरे अधीन हैं। जब मैं एक से कहता हूँ−‘जाओ’, तो वह जाता है और दूसरे से−‘आओ’, तो वह आता है और अपने सेवक से−‘यह करो’, तो वह करता है।” यह सुन कर येशु को उस पर आश्चर्य हुआ। उन्होंने अपने पीछे आते हुए लोगों की ओर मुड़ कर कहा, “मैं तुम लोगों से कहता हूँ : इस्राएल में भी मैंने इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया।” और भेजे हुए लोगों ने घर लौट कर उस सेवक को स्वस्थ पाया।
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