येशु किसी विश्राम के दिन गेहूँ के खेतों से हो कर जा रहे थे। उनके शिष्य अनाज की बालें तोड़ कर और उन्हें हाथ से मसल-मसल कर खाने लगे। कुछ फरीसियों ने कहा, “जो काम विश्राम के दिन मना है, तुम क्यों वही कर रहे हो?” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उसके साथियों को भूख लगी, तब दाऊद ने क्या किया था? उसने परमेश्वर के भवन में जा कर भेंट की रोटियाँ उठा लीं, उन्हें स्वयं खाया तथा अपने साथियों को भी खिलाया। केवल पुरोहितों को छोड़ किसी और को उन्हें खाने की आज्ञा तो नहीं है।” तब येशु ने उनसे कहा, “मानव-पुत्र विश्राम के दिन का स्वामी है।”
किसी दूसरे विश्राम के दिन येशु सभागृह में जा कर शिक्षा दे रहे थे। वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दायाँ हाथ सूख गया था। शास्त्री और फरीसी इस बात की ताक में थे कि यदि येशु विश्राम के दिन किसी को स्वस्थ करें, तो वे उन पर दोष लगा सकें। यद्यपि येशु उनके विचार जानते थे, फिर भी उन्होंने सूखे हाथ वाले मनुष्य से कहा, “उठो और बीच में खड़े हो जाओ।” वह उठा और बीच में खड़ा हो गया। येशु ने उन से कहा, “मैं तुम से पूछता हूँ−विश्राम के दिन भलाई करना उचित है या बुराई, प्राण बचाना या नष्ट करना?” तब चारों ओर उन सब पर दृष्टि दौड़ा कर उन्होंने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ बढ़ाओ।” उसने ऐसा ही किया और उसका हाथ अच्छा हो गया। वे बहुत नाराज हो गये और आपस में परामर्श करने लगे कि हम येशु का क्या करें।
उन दिनों येशु प्रार्थना करने एक पहाड़ी पर चढ़े और वे रात भर परमेश्वर की प्रार्थना में लीन रहे। दिन होने पर उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उन में से बारह को चुन कर उन्हें ‘प्रेरित’ नाम दिया : सिमोन जिसे उन्होंने ‘पतरस’ नाम दिया और उसके भाई अन्द्रेयास को; याकूब और योहन को; फिलिप और बरतोलोमी को, मत्ती और थोमस को; हलफई के पुत्र याकूब और शिमोन को, जो ‘धर्मोत्साही’ कहलाता है; याकूब के पुत्र यहूदा और यूदस इस्करियोती को, जो विश्वासघाती निकला।
येशु उन बारह प्रेरितों के साथ पहाड़ी से उतर कर एक मैदान में खड़े हो गये। वहाँ उनके बहुत-से शिष्य थे और एक विशाल जनसमूह भी था। वे लोग समस्त यहूदा प्रदेश, यरूशलेम नगर और सोर तथा सीदोन के समुद्र-तट से आए थे। वे येशु का उपदेश सुनने और अपने रोगों से मुक्त होने के लिए आए थे। येशु ने अशुद्ध आत्माओं से पीड़ित लोगों को स्वस्थ किया। सब लोग येशु को स्पर्श करने का प्रयत्न कर रहे थे, क्योंकि उन से शक्ति निकल कर सब को स्वस्थ कर रही थी।
येशु ने अपने शिष्यों की ओर देखा और यह कहा,
“धन्य हो तुम, जो गरीब हो;
क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है।
धन्य हो तुम, जो अभी भूखे हो;
क्योंकि तुम तृप्त किये जाओगे।
धन्य हो तुम, जो अभी रोते हो;
क्योंकि तुम हँसोगे।
धन्य हो तुम,
जब मानव-पुत्र के कारण लोग तुम से बैर करेंगे, तुम्हारा बहिष्कार और अपमान करेंगे, और तुम्हारा नाम घृणित समझ कर निकाल देंगे! उस दिन उल्लसित हो और आनन्द मनाओ, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। उनके पूर्वज नबियों के साथ ऐसा ही किया करते थे।
“धिक्कार है तुम्हें, जो धनवान हो;
क्योंकि तुम अपना सुख-चैन पा चुके हो।
धिक्कार है तुम्हें, जो अभी तृप्त हो;
क्योंकि तुम भूखे रहोगे।
धिक्कार है तुम्हें, जो अभी हँसते हो;
क्योंकि तुम शोक मनाओगे और रोओगे।
धिक्कार है तुम्हें,
जब सब लोग तुम्हारी प्रशंसा करते हैं, क्योंकि उनके पूर्वज झूठे नबियों के साथ ऐसा ही किया करते थे।