इसके बाद येशु बाहर निकले। उन्होंने लेवी नामक एक चुंगी-अधिकारी को चुंगीघर में बैठा हुआ देखा। उन्होंने उससे कहा, “मेरे पीछे आओ।” वह उठ खड़ा हुआ और अपना सब कुछ छोड़ कर येशु के पीछे हो लिया। लेवी ने अपने यहाँ येशु के सम्मान में एक बड़ा भोज दिया। चुंगी-अधिकारियों का विशाल समूह तथा अन्य अतिथि बड़ी संख्या में येशु और लेवी के साथ भोजन पर बैठे। इस पर फरीसी और उनके ही सम्प्रदाय के शास्त्री भुनभुनाने और येशु के शिष्यों से यह कहने लगे, “तुम लोग चुंगी-अधिकारियों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “स्वस्थ्य मनुष्य को नहीं, बल्कि रोगियों को वैद्य की आवश्यकता होती है। मैं धार्मिकों को नहीं, पापियों को पश्चात्ताप के लिए बुलाने आया हूँ।” उन्होंने येशु से कहा, “योहन के शिष्य बारम्बार उपवास करते हैं और प्रार्थना में लगे रहते हैं और फरीसियों के शिष्य भी ऐसा ही करते हैं, किन्तु आपके शिष्य खाते-पीते रहते हैं।” येशु ने उनसे कहा, “जब तक दूल्हा उनके साथ है, क्या तुम बारातियों से उपवास करा सकते हो? किन्तु वे दिन आएँगे, जब दूल्हा उन से ले लिया जाएगा। उन दिनों वे उपवास करेंगे।” येशु ने उन्हें यह दृष्टान्त भी सुनाया, “कोई व्यक्ति नया कपड़ा फाड़ कर पुराने कपड़े में पैबंद नहीं लगाता। नहीं तो वह नया कपड़ा फटेगा ही और नये कपड़े का पैबंद पुराने कपड़े के साथ मेल भी नहीं खाएगा। उसी प्रकार कोई व्यक्ति पुरानी मशकों में नया दाखरस नहीं भरता। नहीं तो नया दाखरस पुरानी मशकों को फाड़ देगा, दाखरस बह जाएगा और मशकें भी बरबाद हो जाएँगी। नये दाखरस को नयी मशकों में ही भरना चाहिए। “कोई पुराना दाखरस पी कर नया नहीं चाहता। वह तो कहता है, ‘पुराना ही अच्छा है।’ ”
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