सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध भूतात्मा के वश में था। वह ऊंचे स्वर से चिल्ला उठा, “हे येशु, नासरत-निवासी! हमें आपसे क्या काम? क्या आप हमें नष्ट करने आए हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं−परमेश्वर के भेजे हुए पवित्र जन!” येशु ने यह कहते हुए उसे डाँटा, “चुप रह, और इस मनुष्य से बाहर निकल जा।” भूत ने सब के सामने उस मनुष्य को भूमि पर पटका और उसकी कोई हानि किये बिना वह उसमें से निकल गया। सब विस्मित हो गये और आपस में कहते रहे, “यह क्या बात है! वह अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आदेश देते हैं और वे निकल जाते हैं।” इसके बाद येशु की चर्चा आस-पास के सब स्थानों में होने लगी। येशु सभागृह से उठ कर सिमोन के घर गये। सिमोन की सास तेज बुखार में पड़ी हुई थी और लोगों ने उसके लिए येशु से निवेदन किया। येशु ने उसके पास जा कर बुखार को डाँटा और बुखार उतर गया। वह उसी क्षण उठ कर उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी। जब सूरज डूब रहा था तो सब लोग नाना प्रकार की बीमारियों से पीड़ित अपने रोगियों को येशु के पास लाए। येशु ने एक-एक पर हाथ रख कर उन्हें स्वस्थ कर दिया। भूत बहुतों में से यह चिल्लाते हुए निकले, “आप परमेश्वर के पुत्र हैं।” परन्तु येशु ने उन को डाँटा और उन्हें बोलने से रोका, क्योंकि भूत जानते थे कि वह मसीह हैं। येशु प्रात:काल घर से निकल कर किसी एकान्त स्थान में चले गये। लोग उन को खोजते-खोजते उनके पास आए और उनसे अनुरोध किया कि वह उन को छोड़ कर नहीं जाएँ। किन्तु येशु ने उत्तर दिया, “मुझे दूसरे नगरों में भी परमेश्वर के राज्य का शुभ समाचार सुनाना है। मैं इसीलिए भेजा गया हूँ।” और वह यहूदा देश के सभागृहों में शुभ संदेश सुनाने लगे।
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