लूकस 4:1-32

लूकस 4:1-32 HINCLBSI

येशु पवित्र आत्‍मा से परिपूर्ण हो कर यर्दन नदी के तट से लौटे, तो आत्‍मा उन्‍हें निर्जन प्रदेश में ले गया जहाँ शैतान चालीस दिन तक उनकी परीक्षा लेता रहा। येशु ने उन दिनों कुछ भी नहीं खाया। जब चालीस दिन बीत गए तब उन्‍हें बहुत भूख लगी। शैतान ने उनसे कहा, “यदि आप परमेश्‍वर के पुत्र हैं, तो इस पत्‍थर से कह दीजिए कि यह रोटी बन जाए।” परन्‍तु येशु ने उत्तर दिया, “धर्मग्रंथ में लिखा है : ‘मनुष्‍य केवल रोटी से ही नहीं जीता है।’ ” फिर शैतान उन्‍हें ऊपर उठा ले गया और क्षण भर में संसार के सब राज्‍य दिखाए। शैतान उनसे बोला, “मैं आप को इन सब राज्‍यों का अधिकार और इनका वैभव दे दूँगा। यह सब मुझे सौंपा गया है और मैं जिस को चाहता हूँ, उस को यह देता हूँ। यदि आप मेरी आराधना करें, तो यह सब आप का हो जाएगा।” पर येशु ने उसे उत्तर दिया, “धर्मग्रन्‍थ में यह लिखा है : ‘अपने प्रभु परमेश्‍वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो।’ ” तब शैतान येशु को यरूशलेम नगर में ले गया और मन्‍दिर के शिखर पर उन्‍हें खड़ा कर उनसे बोला, “यदि आप परमेश्‍वर के पुत्र हैं, तो यहाँ से नीचे कूद जाइए; क्‍योंकि धर्मग्रन्‍थ में लिखा है : ‘आपके विषय में परमेश्‍वर अपने दूतों को आदेश देगा कि वे आपकी रक्षा करें। वे आपको अपने हाथों पर संभाल लेंगे कि कहीं आपके पैरों को पत्‍थर से चोट न लगे।’ ” येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह भी कहा गया है : ‘अपने प्रभु परमेश्‍वर की परीक्षा मत लो।’ ” इस तरह सब प्रकार की परीक्षा लेने के बाद शैतान, निश्‍चित समय पर लौटने के लिए, येशु के पास से चला गया। आत्‍मा के सामर्थ्य से सम्‍पन्न हो कर येशु गलील प्रदेश को लौटे और उनकी चर्चा आस-पास के समस्‍त क्षेत्र में फैल गयी। वह उनके सभागृहों में शिक्षा देने लगे और सब लोग उनकी प्रशंसा करते थे। जब येशु नासरत नगर में आए, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ था तो वह विश्राम के दिन अपनी आदत के अनुसार सभागृह गये। वह धर्मग्रंथ से पाठ पढ़ने के लिए उठे, तो उन्‍हें नबी यशायाह की पुस्‍तक दी गयी। पुस्‍तक खोल कर येशु ने वह स्‍थल निकाला, “जहाँ लिखा है : “प्रभु का आत्‍मा मुझ पर है, क्‍योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है कि मैं गरीबों को शुभ-समाचार सुनाऊं, उसने मुझे भेजा है जिससे मैं बन्‍दियों को मुक्‍ति का और अन्‍धों को दृष्‍टि-प्राप्‍ति का सन्‍देश दूँ, मैं दलितों को स्‍वतन्‍त्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।” येशु ने पुस्‍तक बन्‍द कर सेवक को दे दी और बैठ गये। सभागृह के सब लोगों की आँखें उन पर टिकी हुई थीं। तब वह उन से कहने लगे, “धर्मग्रन्‍थ का यह कथन आज आप लोगों के सामने पूरा हो गया।” सब लोगों ने उनकी प्रशंसा की। वे उनके मुख से निकले अनुग्रहपूर्ण शब्‍द सुन कर अचम्‍भे में पड़ गए, और पूछने लगे, “क्‍या यह यूसुफ के पुत्र नहीं हैं?” येशु ने उनसे कहा, “तुम निश्‍चय ही मुझे यह कहावत सुनाओगे : ‘ओ वैद्य! पहले अपना इलाज कर।’ तुम मुझ से यह भी कहोगे : ‘कफरनहूम नगर में जो कुछ हुआ है, हमने उसके बारे में सुना है। अब वह यहाँ अपने नगर में भी कीजिए।’ ” फिर येशु ने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ : नबी का स्‍वागत अपने नगर में नहीं होता। सच्‍चाई की बात तो यह है कि नबी एलियाह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्षों तक पानी नहीं बरसा और सारे देश में घोर अकाल पड़ा था, तो उस समय इस्राएल देश में बहुत-सी विधवाएँ थीं। फिर भी एलियाह उन में किसी के पास नहीं भेजे गये−केवल सीदोन देश के सारफत नगर में रहने वाली एक विधवा के पास। और नबी एलीशा के दिनों में इस्राएल देश में बहुत-से कुष्‍ठरोगी थे। फिर भी उन में से कोई भी कुष्‍ठरोगी शुद्ध नहीं किया गया−केवल सीरिया देश का निवासी नामान शुद्ध किया गया।” यह सुन कर सभागृह के सब लोग बहुत क्रुद्ध हो गये। वे उठ खड़े हुए और उन्‍होंने येशु को नगर से बाहर निकाला और जिस पहाड़ी पर उनका नगर बसा था, वे येशु को उसकी चोटी पर ले चले, ताकि उन्‍हें नीचे ढकेल दें; परन्‍तु येशु उनके बीच से निकल कर चले गये। येशु गलील प्रदेश के कफरनहूम नगर में आए और विश्राम के दिन लोगों को शिक्षा देने लगे। लोग उनकी शिक्षा सुन कर आश्‍चर्यचकित हो गए, क्‍योंकि वह अधिकार के साथ बोलते थे।