लूकस 23:44-56

लूकस 23:44-56 HINCLBSI

लगभग दोपहर का समय था। उस समय से तीसरे पहर तक सारे देश में अंधेरा छाया रहा। सूर्य का प्रकाश जाता रहा और मन्‍दिर का परदा बीच से फट कर दो टुकड़े हो गया। येशु ने ऊंचे स्‍वर से पुकार कर कहा, “पिता! मैं अपनी आत्‍मा को तेरे हाथों में सौंपता हूँ”, और यह कह कर उन्‍होंने प्राण त्‍याग दिये। शतपति ने यह घटना देख कर परमेश्‍वर की स्‍तुति की और यह कहा, “निश्‍चय ही, यह मनुष्‍य धर्मात्‍मा था।” बहुत-से लोग यह दृश्‍य देखने के लिए इकट्ठे हो गये थे। वे सब इन घटनाओं को देख कर अपनी छाती पीटते हुए लौट गये। येशु के सब परिचित व्यक्‍ति कुछ दूर खड़े थे। उनमें स्‍त्रियाँ भी थीं, जो गलील प्रदेश से येशु के पीछे-पीछे आयी थीं और यह सब देख रही थीं। धर्म-महासभा का यूसुफ नामक सदस्‍य निष्‍कपट और धार्मिक था। उसने सभा की योजना और उसके कार्य में अपना मत नहीं दिया था। वह यहूदा प्रदेश के नगर अरिमतियाह का निवासी था और परमेश्‍वर के राज्‍य की प्रतीक्षा में था। उसने पिलातुस के पास जा कर येशु का शव माँग लिया। उसने शव को क्रूस से उतारा और मलमल के कफन में लपेट कर एक ऐसी कबर में रख दिया, जो चट्टान में खुदी हुई थी और जिस में कभी किसी को नहीं रखा गया था। उस दिन शुक्रवार था और विश्राम-दिवस आरम्‍भ हो रहा था। जो स्‍त्रियाँ येशु के साथ गलील प्रदेश से आयी थीं, उन्‍होंने यूसुफ के पीछे-पीछे जा कर कबर को देखा और यह भी देखा कि येशु का शव किस तरह रखा गया है। तब उन्‍होंने लौट कर सुगन्‍धित द्रव्‍य तथा विलेपन तैयार किया और विश्राम के दिन नियम के अनुसार विश्राम किया।