तब सारी सभा उठी और वे उन्हें राज्यपाल पिलातुस के यहाँ ले गये। वे यह कहते हुए येशु पर अभियोग लगाने लगे, “हम ने इस मनुष्य को हमारी जाति को पथभ्रष्ट करते, सम्राट को कर देने से लोगों को मना करते और अपने आप को मसीह एवं राजा कहते सुना है।” पिलातुस ने येशु से यह प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येशु ने उत्तर दिया, “आप स्वयं कह रहे हैं।” तब पिलातुस ने महापुरोहितों और भीड़ से कहा, “मैं इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाता।” उन्होंने यह कहते हुए आग्रह किया, “यह गलील प्रदेश से ले कर यहाँ तक यहूदा प्रदेश के कोने-कोने में अपनी शिक्षा से जनता को विद्रोह के लिए भड़काता है।” पिलातुस ने यह सुन कर पूछा, “क्या यह मनुष्य गलील-निवासी है?” और यह जान कर कि वह गलील के शासक हेरोदेस के अधिकार-क्षेत्र से हैं, उसने येशु को हेरोदेस के पास भेज दिया। वह भी उन दिनों यरूशलेम में ही था। हेरोदेस येशु को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। वह बहुत समय से उन्हें देखना चाहता था, क्योंकि उसने येशु की चर्चा सुनी थी और उनका कोई चमत्कार देखने की आशा करता था। वह येशु से बहुत-से प्रश्न करता रहा, परन्तु उन्होंने उसे उत्तर नहीं दिया। इस बीच महापुरोहित और शास्त्री वहाँ खड़े थे; वे येशु पर उग्रतापूर्वक अभियोग लगाते रहे। तब हेरोदेस ने अपने सैनिकों के साथ येशु का अपमान तथा उपहास किया और उन्हें भड़कीला वस्त्र पहना कर पिलातुस के पास वापस भेज दिया। उसी दिन हेरोदेस और पिलातुस परस्पर मित्र बन गये। इससे पहले उन में शत्रुता थी।
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