बेख़मीर रोटी का दिन आया, जब पास्का-पर्व के मेमने की बलि चढ़ाना आवश्यक था। येशु ने पतरस और योहन को यह कहकर भेजा, “जाओ, और हमारे लिए पास्का-पर्व के भोज की तैयारी करो ताकि हम उसे खा सकें।” उन्होंने येशु से पूछा, “आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ उसकी तैयारी करें?” येशु ने उत्तर दिया, “नगर में प्रवेश करते ही तुम्हें एक मनुष्य मिलेगा, जो पानी से भरा घड़ा लिये जा रहा होगा। उसके पीछे-पीछे जाना और जिस घर में वह प्रवेश करे, उस घर के स्वामी से कहना, ‘गुरुवर ने आप से यह कहा है : ‘अतिथिशाला कहाँ है, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ पास्का-पर्व का भोजन करूँगा?’ और वह तुम्हें ऊपर एक सजा-सजाया बड़ा कमरा दिखा देगा। वहीं तैयार करना।” वे चले गये। येशु ने जैसा कहा था, उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया और पास्का-पर्व के भोज की तैयारी की। जब समय हुआ तब येशु प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठे और उन्होंने उन से कहा, “मैं कितना चाहता था कि दु:ख भोगने से पहले पास्का-पर्व का यह भोजन तुम्हारे साथ करूँ, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, जब तक यह परमेश्वर के राज्य में पूर्ण न हो जाए, मैं इसे फिर नहीं खाऊंगा।” इसके बाद येशु ने कटोरा लिया, धन्यवाद की प्रार्थना की और कहा, “इसे लो और आपस में बाँट लो; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, आज से लेकर उस दिन तक मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊंगा जब तक परमेश्वर का राज्य न आए।” येशु ने रोटी ली और धन्यवाद की प्रार्थना करने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिए दी जा रही है। यह मेरी स्मृति में किया करो”। इसी तरह उन्होंने भोजन के बाद यह कहते हुए कटोरा दिया, “यह कटोरा मेरे रक्त द्वारा स्थापित नया विधान है। यह तुम्हारे लिए बहाया जा रहा है।
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