बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये। शिमोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और बालक की माता मरियम से यह कहा, “देखिए, यह बालक एक ऐसा चिह्न है जिसका लोग विरोध करेंगे। इस के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेध देगी। इस प्रकार बहुत लोगों के मनोभाव प्रकट हो जाएँगे।” हन्नाह नाम एक नबिया थी जो अशेर-वंशी फ़नूएल की पुत्री थी। वह बहुत बूढ़ी थी। वह विवाह के बाद केवल सात वर्ष अपने पति के साथ रही और फिर विधवा हो गयी थी। अब वह चौरासी वर्ष की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात परमेश्वर की सेवा में लगी रहती थी। वह भी उसी समय आ कर परमेश्वर को धन्यवाद देने लगी; और जो लोग यरूशलेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सब को उस बालक के विषय में बताने लगी। प्रभु की व्यवस्था के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलील प्रदेश में अपने नगर नासरत को लौट गये। बालक येशु बढ़ता गया। वह सबल और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया। उस पर परमेश्वर का अनुग्रह बना रहा।
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